पहले सोचो, फिर करो – शिक्षाप्रद कथा

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किसी जंगल के किनारे पानी से भरी एक बड़ी सी झील थी| इसमें कुछ मेंढ़क खूब मजे का जीवन व्यतीत कर रहे थे| एक बार ऐसा हुआ कि वर्षा ऋतू में पानी की एक बूंद भी नहीं बरसी| भीषण गरमी से झील सूख गई थी| वैसे तो मेंढ़क भूमि तथा पानी दोनों स्थानों पर रह सकते थे, मगर ऐसा होने पर भी वह चाहते थे कि कुछ पानी हो तो अच्छा होगा| उनकी यह दशा देखकर मेंढ़कों का सरदार उन सबके साथ उस सूखी झील से बाहर आ गया और वे सभी एक साथ किसी पानी वाली झील की तलाश में चल पड़े|

जब वे मेंढ़क पानी की तलाश में इधर-उधर घूम रहे थे, तभी उन्हें पानी से भरा एक कुआं दिखाई दिया| पानी देखकर सभी मेंढ़क उतावले हो उठे| वे सभी कुएं में कूद जाना चाहते थे| यहां तक कि उनका सरदार भी यही चाहता था, मगर इस विषय पर सोच-विचार के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचा कि ऐसा करना ठीक नहीं है| वह बोला – “प्यारे दोस्तो! भविष्य के बारे में सोच कर आगे बढ़ना ही अच्छा होता है| माना कि यह कुआं पानी से भरा है| मगर अगर यह भी सूख गया तो हम तो बेमौत मारे जाएंगे| कुएं से बाहर निकलना असंभव होगा| नतीजा होगा सूख से तड़प-तड़प कर हमारी मौत|”

शिक्षा: कोई कार्य करने से पहले खूब सोच-समझ लो|