भारतीय सिनेमा ने लगाया शतक

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बॉलीवुड ने बनाया शतक,100 साल पहले यानी 03 मई 1913 को पहली भारतीय फिल्म राजा हरिश्‍चंद्र रिलीज़ हुई थी। यह एक मूक फिल्‍म थी और इसकी कहानी राजा हरिशचंद्र के जीवन पर आधारित थी।03 मई 1913 को मुंबई के मैजिस्टिक टॉकीज में राजा हरिश्‍चंद्र रिलीज़ हुई थी। इसे दादा साहेब फाल्के ने बनाया था। फिल्म निर्माण में कोलकाता स्थित मदन टॉकिज के बैनर तले ए ईरानी ने मह… भारतीय सिनेमा ने लगाया शतक

बॉलीवुड ने बनाया शतक,100 साल पहले यानी 03 मई 1913 को पहली भारतीय फिल्म राजा हरिश्‍चंद्र रिलीज़ हुई थी। यह एक मूक फिल्‍म थी और इसकी कहानी राजा हरिशचंद्र के जीवन पर आधारित थी।03 मई 1913 को मुंबई के मैजिस्टिक टॉकीज में राजा हरिश्‍चंद्र रिलीज़ हुई थी। इसे दादा साहेब फाल्के ने बनाया था। फिल्म निर्माण में कोलकाता स्थित मदन टॉकिज के बैनर तले ए ईरानी ने महत्वपूर्ण शुरुआत करते हुए पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ बनाई। इस फिल्म की शूटिंग रेलवे लाइन के पास की गई थी, इसलिए इसके अधिकांश दृश्य रात के हैं। रात के समय जब ट्रेनों का चलना बंद हो जाता था, तब इस फिल्म की शूटिंग की जाती थी। जाने माने फिल्म निर्माता श्याम बेनेगल ने कहा कि भारतीय सिनेमा की शुरुआत बातचीत के माध्यम से नहीं, बल्कि गानों के माध्यम से हुई।अभिनेता मनोज कुमार का कहना है कि 40 और 50 का दशक हिन्दी सिनेमा के लिहाज से शानदार रहा। 1949 में राजकपूर की फिल्म ‘बरसात’ ने बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाई। इस फिल्म को उस जमाने में ‘ए’ सर्टिफिकेट दिया गया था, क्योंकि अभिनेत्री नरगिस और निम्मी ने दुपट्टा नहीं ओढ़ा था।महबूब खान की साल 1957 में बनी फिल्म मदर इंडिया हिंदी सिनेमा के क्षेत्र में मील का पत्थर मानी जाती है। सत्यजीत रे की फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ और ‘शम्भू मित्रा’ की फिल्म जागते रहो फिल्म निर्माण और कथानक का शानदार उदाहरण हैं। फिर जैसे-जैसे सिनेमा आगे बढ़ता गया कई बदलाव आए, और गुरूदत्त की फिल्में ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’ तथा ‘साहब बीबी’ और ‘गुलाम’ को कौन भूल सकता है।रमेश सिप्पी की 1975 में बनी फिल्म ‘शोले’ ने हिन्दी फिल्म निर्माण को नई दिशा दी। यह अभिनेता अमिताभ बच्चन के एंग्री यंग मैन के रूप में उभरने का दौर था। जैसे -जैसे सिनेमा आगे बढ़ा आमिर, शाहरुख, का दौर आया। ऐसे में मनोज कुमार का कहना है कि आज हिन्दी फिल्मों में सशक्त कथानक का अभाव पाया जा रहा है और फिल्में एक खास वर्ग और अप्रवासी भारतीयों को ध्यान में रखकर बनायी जा रही है, जिसके कारण लोग सिनेमाघरों से दूर हो रहे हैं, क्योंकि इन फिल्मों से वे अपने आप को नहीं जोड़ पा रहे हैं।नए दौर में विजय दानदेथा की कहानी पर आधारित फिल्म पहेली श्याम बेनेगल की ‘वेलकम टू सज्जनपुर’ और ‘वेलडन अब्बा’, आशुतोष गोवारिकर की ‘लगान’, ‘स्वदेश’, आमिर खान अभिनीत ‘थ्री ईडियट्स’, अमिताभ बच्चन अभिनीत ‘पा’ और ‘ब्लैक’, शाहरुख खान अभिनीत ‘माई नेम इज खान’ जैसे कुछ नाम ही सामने आते हैं जो कथानक और अभिव्यक्ति की दृष्टि से सशक्त माने जाते है।जहां एक दौर था राजा हरिश्‍चंद्र का जिसमें विएफक्स, तकनीकि का अभाव था और अब दौर ऐसा आ गया कि भारतीय सिनेमा में किसी भी तकनीकि का अभाव नहीं है इसका जीता जागता उदहारण है रा-वन जो भरपूर तकनीकि से लैस थी। आगे भी उम्मीदस करते हैं बॉलीवुड एसे ही कार्य करता रहेगा देश, और पूरी दुनिया में जिस तरह छाया है वह उसे बरकरार रखेगा,और अपना कारवां ऐसे ही आगे बढ़ाता रहेगा।