खाद्य सुरक्षा अध्यादेश को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है। अब अध्यादेश को सीधे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। राष्ट्रपति से हरी झंडी मिलने के बाद ये अध्यादेश लागू हो जाएगा। राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के 6 महीने के अंदर सरकार को इसे बिल को संसद में पास करवाना होगा।
दरअसल विपक्ष के साथ-साथ सहयोगी दलों का कहना था कि सरकार इस बिल पर पहले संसद में चर्चा करें,…
खाद्य सुरक्षा अध्यादेश को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है। अब अध्यादेश को सीधे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। राष्ट्रपति से हरी झंडी मिलने के बाद ये अध्यादेश लागू हो जाएगा। राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के 6 महीने के अंदर सरकार को इसे बिल को संसद में पास करवाना होगा।
दरअसल विपक्ष के साथ-साथ सहयोगी दलों का कहना था कि सरकार इस बिल पर पहले संसद में चर्चा करें, उसके बाद बिल को मंजूरी दी जाए। लेकिन सरकार ने दूसरा रास्ता अपनाते हुए खाद्य सुरक्षा अध्यादेश को कैबिनेट की मंजूरी दे दी है।
आपको बता दें कि खाद्य सुरक्षा बिल को सोनिया गांधी का ड्रीम प्रोजेक्ट माना जाता है और 2014 में मनमोहन सरकार की चुनावी नैया पार लगाने का मकसद से भी इसे मंजूरी दी गई है।
इस बिल का उद्देश्य भारत के 1.2 अरब लोगों में से 67 फीसदी लोगों को रियायती दर पर अनाज उपलब्ध कराना है। इसके तहत गरीबों को 3 रु किलो चावल और 2 रु किलो गेहूं मिलेगा और करीब 80 करोड़ लोगों को रियायती दर पर अनाज उपलब्ध कराने के लिए सरकार पर करीब 1.3 लाख करोड़ रुपये का भार पड़ेगा।
खिला-पिलाकर वोट लेने की परंपरा हिंदुस्तान में नई नहीं है, कांग्रेस को भी इसकी कीमत पता है इसलिए सोनिया के सिपाहियों ने यह फार्मूला तैयार किया है।
दरअसल कांग्रेस अध्यादेश की शक्ल में इस शस्त्र को आजमाना चाहती है क्योंकि उसे यकीन है कि ये वो तिलिस्म है जिसके दम पर उसे तीसरी बार सत्ता हासिल हो सकती है।