प्रधानमंत्री कार्यालय डीएलएफ से जुड़े रॉबर्ट वाड्रा पर लगे आरोपों के बारे में कोई भी सूचना नहीं देना चाहता है। वह इन सूचनाओं को गोपनीय मानता है, और इन्हें आरटीआई अधिनियम के तहत दिए जाने से छूट चाहता है।
लखनऊ स्थित आरटीआई कार्यकर्ता नूतन ठाकुर ने डीएलएफ-वाड्रा प्रकरण में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दायर अपनी रिट याचिका के सम्बंध में सूचनाएं मांगी थीं…
प्रधानमंत्री कार्यालय डीएलएफ से जुड़े रॉबर्ट वाड्रा पर लगे आरोपों के बारे में कोई भी सूचना नहीं देना चाहता है। वह इन सूचनाओं को गोपनीय मानता है, और इन्हें आरटीआई अधिनियम के तहत दिए जाने से छूट चाहता है।
लखनऊ स्थित आरटीआई कार्यकर्ता नूतन ठाकुर ने डीएलएफ-वाड्रा प्रकरण में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दायर अपनी रिट याचिका के सम्बंध में सूचनाएं मांगी थीं कि याचिका की प्रति पीएमओ को कब प्राप्त हुई और उस पर क्या कार्रवाई की गई। साथ ही उन्होंने सम्बंधित फाइल की नोटशीट की प्रति भी मांगी थी। पीएमओ ने पहले एक मार्च, 2013 के अपने पत्र द्वारा यह कह कर सूचना देने से मना कर दिया था कि प्रकरण अभी न्यायालय में विचाराधीन है।
अपने हलफनामे में पीएमओ ने वाड्रा और रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ के बीच हुए भूमि सौदों में अनियमितता के आरोपों को ‘गलत, सुनी-सुनाई बातों पर आधारित और दर्दनाक’ बताया था। ठाकुर ने अपने आरटीआई आवेदन के जरिए पीएमओ द्वारा हाई कोर्ट के समक्ष दायर हलफनामे के संबंध में सभी फाइल नोटिंग्स को जानना चाहा था। उन्होंने अपनी याचिका मिलने के बाद शीर्ष कार्यालय द्वारा की गई कार्रवाई के बारे में भी जानना चाहा था।
पिछले साल एक पीआईएल के जरिये ठाकुर ने कोर्ट से मांग की थी कि वह किसी जांच एजेंसी को आदेशित करे कि वह रॉबर्ट वाड्रा के डीएलएफ से रिश्तों की जांच करे। हाईकोर्ट ने ठाकुर की इस अपील को इस वर्ष मार्च में खारिज कर दिया था जब सरकार ने कोर्ट में कहा कि वह इस आदेश को देने के लिए अधिकृत नहीं है। सरकार की ओर से कहा गया कि दो निजी लोगों के बीच में व्यापारी लेन-देन के बारे में कोर्ट को जांच देने का अधिकार नहीं है।
इस मामले में कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की थी कि यह अपील पूर्ण रूप से मीडिया में आई खबरों के आधार पर दायर की गई है और इसमें लगाए गए आरोपों का एक भी सबूत नहीं है।