इंदौर. सांसारिक जीवन में दिन में निराशा और रात में तनाव, जबकि संयमित जीवन में दिन में ज्ञान और रात में ध्यान है। दीक्षा एक मंत्र विद्या है। यह चेतना को जागृत करती है और जो दीक्षा देखता है उसे भी महा पुण्य मिलता है। जहां संयम है वहां आकर्षण होता है।
ये विचार उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने मुमुक्षु गौरी जैन की दीक्षा समारोह में गुरुवार को न्यू पलासिया स्थित जैन दिवाकर महाविद्यालय परिसर में व्यक्त किए। साथ में राजेश मुनि ने दीक्षा पाठ पढ़ाया। श्वेत वस्त्र धारण कर दीक्षा लेने के बाद मुमुक्षु गौरी जैन अब महासती अक्षदाश्री कहलाएंगी।
महाभिनिष्क्रमण यात्रा की शुरुआत रेसकोर्स रोड से हुई। इसमें मुमुक्षु जैन दुल्हन की तरह सजी थीं। यात्रा का समापन जैन दिवाकर महाविद्यालय में हुआ। संतों ने मंगलाचरण कर कार्यक्रम की शुरुआत की। इस मौके पर ध्वजारोहण भी किया गया।
इसके पहले 12 साधु, 45 साध्वियों और सैकड़ों श्वेतांबर जैन समाजजनों ने क्षमायाचना करते हुए कहा-संसार में सार नहीं है और संयम में सार है, असारसा को मैंने महसूस किया। गुरुकृपा से आज मैंने संयमित जीवन में प्रवेश किया। संचालन हस्तीमल झेलावत ने किया। आभार संतोष मामा ने माना।