इमालवा-भोपाल। लोकायुक्त में अब मंत्रियों के खिलाफ आसानी से जांच प्रकरण दर्ज नहीं होंगे। शिकायत मिलने पर पहले इस बात का परीक्षण किया जाएगा कि मंत्री की संबंधित मामले में सीधी भूमिका है या नहीं। अभी होता ये है कि शिकायत का परीक्षण करने पर पहली नजर में जांच प्रकरण दर्ज करने के आधार समझ में आने पर मामला दर्ज कर लिया जाता है पर ये बारीकी से नहीं देखा जाता कि उसमें मंत्री की भूमिका कितनी है। इसकी वजह से जांच के बाद मंत्री के खिलाफ विलोपन और खात्मे की कार्रवाई करनी पड़ती है। इससे अनावश्यक विवाद की स्थिति बनती है। इसलिए नई व्यवस्था लागू करने का फैसला किया गया है।
जानकारी के मुताबिक हाल ही में हाईकोर्ट में लोकायुक्त ने एक याचिका के जवाब में स्वीकार किया है कि कुछ मामलों की जांच में मिंत्रयों की संलिप्तता नहीं पाई गई। इसके आधार पर तत्कालीन उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री बाबूलाल गौर और खनिज राज्यमंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के नाम प्रकरण से विलोपित कर दिए। सूत्रों का कहना है कि अफसरों से जुड़े कुछ और प्रकरणों में भी इसी तरह के तथ्य सामने आए। इसके आधार पर खात्मा रिपोर्ट कोर्ट में पेश की गई और प्रकरण समाप्त हो गए पर इसको लेकर जो आरोप-प्रत्यारोप के दौर चलते हैं वे संस्था के साथ-साथ संबंधित व्यक्ति की साख को प्रभावित करते हैं।
यही वजह है कि लोकायुक्त संगठन ने तय किया है कि मंत्रियों से जुड़ी शिकायत का बारीकी से परीक्षण किया जाएगा। इसमें ये देखा जाएगा कि शिकायत से जुड़ी प्रक्रिया में मंत्री की भूमिका कितनी है। यदि मामले की फाइल मंत्री तक ही नहीं जाती है और निर्णय लेने का स्तर कुछ और है तो फिर मंत्री का नाम हटाकर शिकायत पर जांच प्रकरण दर्ज किया जाएगा।
इनका कहना है
‘ जांच प्रकरण दर्ज कराने के पहले ये देखना जरूरी है कि उसमें मंत्री का इन्वॉलमेंट कितना है। कई बार शिकायत को वजनदार बनाने के लिए भी मंत्री का नाम शामिल कर दिया जाता है। जब भूमिका प्रमाणित नहीं होती तो खात्मा लगाना पड़ता है। इस प्रक्रिया से बचने के लिए नई व्यवस्था बनाई जा रही है। अब पुख्ता परीक्षण के बाद ही मंत्री के खिलाफ प्राथमिक जांच दर्ज की जाएगी।”– पीपी नावलेकर लोकायुक्त, मप्र