इकलौता मंदिर जहां अकेले बैठे हैं भोलेनाथ, बाहर माता पार्वती कर रहीं इंतजार

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सावन भगवान महादेव का अत्यंत प्रिय महीना है, और इस महीने में शिव मंदिरों में भगवान शिव के अभिषेक, दर्शन और पूजन के लिए श्रद्धालु जाते हैं। अधिकांश मंदिरों में गर्भगृह के मध्य में शिवलिंग होता है, तथा पास में नंदी के साथ माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय विराजमान होते हैं। किन्तु, वृंदावन में एक अनोखा शिव मंदिर है, जहाँ भगवान शिव गर्भगृह में विराजमान हैं तथा माता पार्वती दरवाजे के बाहर उनके आने की प्रतीक्षा कर रही हैं।

यह प्रसिद्ध गोपेश्वर महादेव मंदिर है, जो द्वापर युग यानी तकरीबन 5300 साल पहले स्थापित हुआ था। श्रीमद भागवत महापुराण में इस मंदिर और गोपेश्वर महादेव की महिमा का वर्णन मिलता है। इस महाकाव्य के मुताबिक, जब भगवान कृष्ण ने महारास रचाया था, तो भगवान शिव भी इसे देखने वृंदावन आए थे। महारास में प्रभु श्री कृष्ण के साथ लाखों गोपियां थीं, और महादेव ने भी इसमें शामिल होने का प्रयास किया, लेकिन गोपियों ने उन्हें दरवाजे पर ही रोक दिया।

तब महादेव ने एक गोपी की सलाह मानकर स्त्री रूप धारण किया, साड़ी पहनी, नाक में बड़ी नथुनी पहनी, कानों में बालियां पहनीं और 16 श्रृंगार किए। इसके बाद ही वे महारास में सम्मिलित हो पाए। इस समय भगवान शिव पहली बार बिना माता पार्वती को बताए कैलाश से बाहर निकले थे। जब माता पार्वती को यह पता चला, तो वे भी महादेव का पीछा करते हुए वृंदावन पहुंच गईं। वहां उन्होंने देखा कि बाबा नथुनिया वाली गोपी बने हुए हैं और प्रभु श्री कृष्ण के साथ रास रचा रहे हैं। यह देखकर माता पार्वती भी मोहित हो गईं तथा उन्होंने भी महारास में शामिल होने की सोची, मगर उन्हें डर था कि बाबा तो स्त्री रूप धारण करके अंदर गए हैं, यदि वे पुरुष रूप धारण करेंगी तो क्या होगा।

इसी सोच के चलते माता पार्वती गर्भगृह के बाहर बैठकर महादेव को बाहर बुलाने का प्रयास करने लगीं। भगवान शिव ने स्पष्ट कर दिया कि इस रूप में वे यहीं रहेंगे। तब से भगवान शिव गोपेश्वर महादेव के रूप में वहां विराजमान हैं तथा गर्भगृह के बाहर माता पार्वती उनके इंतजार में बैठी हैं। आज भी, शरद पूर्णिमा की रात को भगवान शिव 16 श्रृंगार धारण करते हैं तथा गोपी के रूप में प्रकट होते हैं। सावन के महीने में सभी शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ होती है, लेकिन गोपेश्वर महादेव के इस मंदिर में सबसे ज्यादा श्रद्धालु शरद पूर्णिमा को आते हैं।