झारखंड के जमशेदपुर से करीब 10 किलोमीटर दूर सरायकेला में स्थित प्रसिद्ध हाथी-घोड़ा बाबा का मंदिर है। इस मंदिर से श्रद्धालुओं का अटूट आस्था, श्रद्धा और विश्वास जुड़ा है। दरअसल, यहां श्रद्धालु अपनी मनोकामाना पूरी होने पर मंदिर में भेंट स्वरुप हाथी-घोड़े अर्पित करते हैं। हालांकि, यह हाथी-घोड़ा सचमुच के नहीं, बल्कि मिट्टी के बने होते हैं।
300 साल पहले हुआ इस मंदिर का निर्माण
घोड़ा बाबा मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु इनकी भक्ति में लीन होने के लिए व अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए आते हैं। देवी-देवता की पूजा नहीं-यहां किसी देवी-देवता की पूजा नहीं होती है, बल्कि घोड़ा बाबा की आराधना की जाती है। माना जाता है कि करीब 300 वर्ष पहले बनाए गए मंदिर की परंपरा भी इतनी ही पुरानी है।
मान्यता है कि यहां द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने घोड़े पर सवार होकर खेती के लिए इस ग्राम का दौरा किया था और फिर बलराम ने अपने हल से गम्हरिया की धरती पर खेती की नींव रखी थी। भगवान कृष्ण व बलराम के जाने के बाद उनके घोड़े गम्हरिया में ही रहने लगे थे। तभी से ही गम्हरिया में घोड़े बाबा की पूजा अर्चना की शुरुआत हो गई, जो अब तक जारी है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां आने वाले हर श्रद्धालु अगर सच्चे मन से अपनी मनोकामना घोड़े बाबा से मांग करे तो उनकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।
महिलाओं का प्रवेश निषेध
इस मंदिर में पूर्व में महिलाओं का वर्जित था। लेकिन धीरे घीरे यह प्रथा लुप्त हो गई । हालाकि जो इस मंदिर का संचालन कर रही कुभकांर जाति घर की महिलांए आज भी मंदिर नहीं आती है। हालांकि 18 साल से कम उम्र की लड़कियां इस जगह आ सकती है।