खत्री पहाड़ पर नवमी को आती हैं मां विंध्यवासिनी

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उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड में बांदा जिले के शेरपुर स्योढ़ा गांव में खत्री पहाड़ है। लोगों का मानना है कि नवरात्र में सिर्फ नवमी के दिन इस पहाड़ पर मां विंध्यवासिनी मिर्जापुर से आकर विराजमान होती हैं। खत्री पहाड़ मां दुर्गा के श्राप से ‘कोढ़ी’ यानी सफेद दिखता है।

हिंदू धर्मग्रंथों के जानकार महाराज बलराम दीक्षित ने किंवदंतियों के आधार पर बताया, ‘जब योगी भैरवनाथ ने मां दुर्गा की शक्ति की परीक्षा लेना चाहा और उनका पीछा किया तो दुर्गा ने सबसे पहले भवई गांव के पहाड़ पर शरण लेने का प्रयास किया, लेकिन उस पहाड़ ने दुर्गा का भार सहन करने में असमर्थता जताई। गुस्से में आकर मां दुर्गे ने उसे ‘कोढ़ी’ होने का श्राप दे दिया। इसके बाद वह खत्री पहाड़ पहुंचीं। इस पहाड़ ने भी भार सहन करने में असमर्थता जता दी, मां दुर्गे ने इस पहाड़ को भी ‘कोढ़ी’ होने का श्राप दे दिया।’ विंध्यश्रृंखला से जुड़े इन दोनों पहाड़ों का पत्थर सफेद यानी ‘कोढ़ी’ है।

बलराम महाराज बताते हैं कि जब मां दुर्गे को इन पहाड़ों ने बसने करने की जगह नहीं दी, तब वह पूर्वांचल के मिर्जापुर जिले के विंध्याचल पहाड़ की एक गुफा में समा गईं। यहां भी भैरवनाथ ने मां का पीछा नहीं छोड़ा और वह अंतत: दुर्गा के हाथों मारा गया। वह बताते हैं कि मां दुर्गा, जिन्हें विंध्यवासिनी के भी नाम से जाना जाता है, हर छमाही नवरात्र की नवमी तिथि को खत्री पहाड़ पर आकर विराजमान होती हैं और श्रद्धालुओं की मन्नतें पूरी करती हैं। यही कारण है कि इस पहाड़ में नवमी तिथि को ही भारी भरकम मेला लगता है और लोग मन्नत के आधार पर अपने बच्चों का ‘मुंडन’ कराते हैं। जिस पहाड़ को मां दुर्गे ने श्राप दिया, उस पर वह नवमी तिथि को क्यों जाती हैं? योगी भैरवनाथ को मां दुर्गा की शक्ति की परीक्षा लेने की जरूरत क्यों पड़ी? ये ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब संभव है, किसी धर्मग्रंथ में हो।