घर लाएं, धीमी चाल वाला कछुआ और बढ़ाएं अपनी सफलता की रफ्तार

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धर्मानुसार भगवान विष्णु के दशावतार में से ‘कूर्म’ अर्थात कछुआ भगवान विष्णु का दूसरा अवतार है। सनातन धर्म में कछुए को कूर्म अवतार अर्थात कच्छप अवतार कहकर संबोधित किया जाता है। पद्म पुराण के अनुसार कच्छप के अवतरण में भगवान विष्णु ने क्षीरसागर के समुद्र मंथन के समय मंदरमंद्रांचल पर्वत को अपने कवच पर थामा था। शास्त्रों में कच्छप अवतार की पीठ का घेरा एक लाख योजन का वर्णित किया गया है। इस प्रकार वासुकीनाथ श्री भगवान विष्णु के कच्छप अवतार ने मंदरमंद्रांचल पर्वत तथा श्री वासुकि अर्थात शेषनाग की सहायता से देवों एंव असुरों ने समुद्र मंथन करके चौदह रत्नों की प्राप्ति की इसलिए उसकी पूजा-अर्चना भी की जाती है और इसे शुभ माना जाता है।

कछुए का प्रतीक एक प्रभावशाली यंत्र है जिससे वास्तु दोष का निवारण होता है तथा जीवन में खुशहाली आती है। वास्तु तथा फेंगशुई में इसको स्थापित करने के कुछ सिद्धांत बताए गए हैं जिसे अपनाकर हम वास्तु की इस अमूल्य धरोहर से लाभान्वित हो सकते हैं। कछुए को घर में रखने से कामयाबी के साथ-साथ धन-दौलत का भी समावेश होता है। इसे अपने ऑफिस या घर की उत्तर दिशा में रखें। कछुए के प्रतीक को कभी भी बैडरूम में न रखें। कछुए की स्थापना हेतु सर्वोत्तम स्थान ड्राईंग रूम है।

घर में कछुए की प्रतिमा रखने से हवा एवं जल के सभी दोष मुक्त होते हैं तथा अच्छी ऊर्जा घर में प्रवेश करती है। उत्तर दिशा में कछुए को स्थापित करना शुभ माना जाता है। इसे घर की पूर्व दिशा में भी रखा जा सकता है। जिस घर में कछुए की प्रतिमा रहती या जीता जागता कछुआ रहता है, उसके घर में अकाल मृत्यु की संभावना नहीं रहती तथा हर प्रकार के सुख-समृद्धि का आगमन बना रहता है। बांझपन के दोष को भी कछुआ दूर करता है।