माला में ये विशेष मनका न होने से सारे प्रभाव का हो सकता है नाश

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जप काल में मंत्रों की गणना के लिए माला एक सर्वश्रेष्ठ साधन मानी गई है। मनोवांछित फलों को प्राप्त करने के लिए मंत्र जप की एक निश्चित संख्या का पूरा होना अनिवार्य होता है। वैसे उंगलियों के पोर, फूल, चावल के दाने आदि की सहायता से भी लोग जप करते हैं लेकिन ये माध्यम अल्पसंख्या वाले जप के लिए तो ठीक हैं लेकिन लंबे समय तक चलने वाले हजारों लाखों की संख्या वाले जप इनके द्वारा शुद्ध रूप में पूरे नहीं किए जा सकते। इसीलिए निश्चित गणना, सुविधा और वस्तुगत प्रभाव के लिए माला का प्रयोग ही उचित है।

आध्यात्मिक क्षेत्र में साधना के लिए तुलसी, कमलगट्टा, वैजयंती, कुशग्रंथी, पुत्रजीवा, मोती, मूंगा, शंख, चांदी, सोना, हल्दी, शिवलिंग आदि से माला बनाई जाती है लेकिन गुण और प्रभाव की दृष्टि से रुद्राक्ष माला को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। इतना ही नहीं, अलग-अलग आध्यात्मिक साधना के लिए अलग-अलग माला चयन का विधान है। किसी कार्य के लिए कोई माला स्वीकृत है तो किसी के लिए कोई वर्जित है। ग्रह नक्षत्रों को विचारने के बाद जो माला धारण की जाती है। वह जप में उपयोग किए जाने से पहले ही अपना प्रभाव दिखा देती है।

किसी वस्तु के छोटे-छोटे टुकड़े, बीज अथवा दानों को लेकर माला बनाने अथवा गूंथने की परंपरा प्राचीन काल से रही है। माला के दानों को मणि अथवा मनका कहा जाता है। प्रत्येक माला में 108 दानों को शामिल किया जाता है। हर माला में एक विशिष्ट दाना होता है जिसे सुमेरु कहा जाता है। जप के समय माला के पहले दाने में से जप आरंभ किया जाता है और अंतिम दाने तक पहुंचने के बाद तुरंत पीछे की ओर लौटकर उल्टी दिशा में जप करने का विधान है। सुमेरू दाने को लांघना वर्जित है। प्रथम से अंतिम माला तक किया गया जप एक माला होता है। जप संख्या सुनिश्चित करने का यही समीकरण सरल और सुलभ होता है।

माला में पिरोई जाने वाली मणियों अथवा दानों की संख्या को लेकर जातक की आवश्यकता के अनुसार ऋषियों-मुनियों ने कुछ विधि-विधान बनाए हैं। सामान्य जप के लिए 15, 27 या 54 मनकों की माला सुविधाजनक होती है। इनसे भिन्न संख्याएं वर्जित हैं। माला की संरचना को लेकर 108 के अलावा 15, 27, 54 को ही मान्यता दी गई है। सुमेरु माला के दोनों सिरों के जोड़ पर स्थापित किया जाता है। माला की सुंदरता बढ़ाने के प्रयास में सुमेरु का स्थान परिवर्तन करना माला के संपूर्ण प्रभाव को क्षीण कर देता है और यदि माला में सुमेरु नहीं पिरोया गया है तो माला निष्प्रभावी रहती है। धार्मिक विधि-विधान के अंतर्गत 108 मनकों का किसी माला में होना परम आवश्यक है।

जप गणना में 108 की संख्या गुणन की सुविधा देती है, वहीं इसका आध्यात्मिक दृष्टि से भी काफी महत्व है। माला जप करते समय कोई स्वस्थ्य साधक श्वासगति के अनुकरण पर, प्रति श्वास पर एक बार यदि मंत्र पढ़े और माला का एक मनका सरकाए तो वह एक घंटे में 900 और बारह घंटे में 10,800 बार जप कर लेगा।