टूटा मिथक, सेव-नमकीन बनाकर महिलाएं दे रहीं चुनौती

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रतलाम। महिलाएं सेव- नमकीन बनाने का कठिन काम नहीं कर सकतीं। यह मिथक तोड़ा हैै महिलाओं के एक समूह ने। पुरुष कारीगरों को चुनौती देते हुए उन्होंने नमकीन उद्योग शुरू कर आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ा दिया।

प्रबल महिला उद्योग के नाम से शुरू हुए समूह में 9 महिलाएं हैं। अक्टूबर 2014 से इंद्रानगर में महिलाओं ने छोटा-सा कारखाना शुरू किया।

इसमें प्रारंभिक तौर पर ये महिलाएं हाथों से सेव बना रही हैं। बाहर से आॅर्डर आने पर मशीन की सहायता लेती हैं। रोज करीब 3 क्विंटल नमकीन बनता है। एक महीने में ढाई लाख रुपए तक का सेंव-नमकीन बिक रहा है। रेडीमेड दोने भी बनाए जा रहे हैं। आमदनी को महिलाएं अपने काम के अनुसार बांट लेती हैं। इससे हर महिला को 5 से 10 हजार रुपए प्रतिमाह मिल जाते हैं। सहायक के तौर पर 7 पुरुषों को भी रोजगार दे रही हैं। सेंव का दाम भी 120 रुपए किलो है।

नहीं टूटा हौसला-

इंद्रा नगरनिवासी किरण भाटी ने बताया जब उद्योग की शुरुआत की तो लोगों ने बहुत डराया और कहा भट्‌ठी के सामने बैठकर सेंव निकालने का काम महिलाएं नहीं कर सकतीं। दूसरा काम देख लो। आत्मनिर्भर बनने का जुनून था। शुरू में परेशानी आई लेकिन अब सब सामान्य हो गया। पति की कमाई से घर चलाने में परेशानी होती थी।
अब 10-12 हजार रुपए कमाई हो जाती है। लक्ष्मणपुरा निवासी रामेश्वरी खान ने बताया उद्योग से आत्मनिर्भरता बढ़ी है। दीपा पंत, अंजू बड़गोता, अंजना गुप्ता, र|कुंवर बाई, शारदा बाई, सरोज पंवार, इंद्रराज बाई और संतोषी भी खुश हैं। महिलाएं मार्केटिंग भी कर रही हैं।

आगे क्या –

नमकीन दोने बनाने के बाद अचार, पापड़, मसाले, बड़ी सहित अन्य सामग्री बनाने के साथ टिफिन सेंटर चलाने की तैयारी की जा रही है। फुटकर बिक्री काउंटर भी खोला जा रहा है।

इन्होंने दिखाया रास्ता:

महिला गृह उद्योग का श्रेय जाता है सामाजिक कार्यकर्ता अधिवक्ता अदिति दवेसर को। उन्होंने उद्योग के लिए जमीन दी। आर्थिक मदद की। दवेसर 223443 नंबर पर महिलाओं की सहायता के लिए हेल्पलाइन चलाती हैं। इस पर महिलाएं पारिवारिक शोषण की शिकायत कर काम दिलवाने की मांग करती हैं। कुछ महिलाओं ने सेंव बनाने की इच्छा जताई तो मुझे उद्योग शुरू करने का रास्ता मिल गया।