रतलाम – इमालवा | रतलाम में विगत 27 सितम्बर को घटित दुखद गोलीकांड और इसमें दो युवको की जघन्य ह्त्या और उसके बाद लगाए गए कर्फ्यू को लेकर शहरवासियों में जमकर नाराजगी है | शहर का आम नागरिक कर्फ्यू के दौरान पुलिस की ज्यादती और स्थिति से निपटने में विफलता के बारे में खुलकर बोल रहा है | जिले के प्रभारी मंत्री का घटना के बाद रतलाम नहीं आना और जनप्रतिनिधियों की पुलिस ज्यादती के विरुद्ध चुप्पी लोगो को बहुत खल रही है | ह्त्या के इन गंभीर मामलो को आपसी रंजिश करार देना भी लोगो को हज़म नहीं हो रहा है | लोगो की यह नाराजगी सत्तारूढ़ भाजपा के लिए भारी नुकसान का सबब बन सकती है | ऐसा नहीं है की गुस्सा सिर्फ आम आदमी के मन में है, अपितु भाजपा के मददगार अनुषांगिक संगठनो के कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी खुलकर सामने आई है ऐसे में आने वाले स्थानीय निकाय के चुनावों में यह घटनाक्रम अपना असर दिखाएगा इससे कोई इनकार नहीं कर सकता है |
रतलाम का आम आदमी इन दिनों बेहद नाराज़ है | विगत 27 सितम्बर के घटनाक्रम को अनपेक्षित बताया जाना और दो युवको की जघन्य ह्त्या जैसी वारदात को गंभीरता से नहीं लेना आम शहरवासियो को उद्वेलित कर रहा है | पुरे घटनाक्रम को व्यक्तिगत विवाद और रंजिश करार देने का जो प्रयास हो रहा है वह भी लोगो के गले नहीं उतर रहा है | लोग सवाल कर रहे है ? की क्या ये हत्याए रोकी नहीं जा सकती थी | लोगो के जेहन में यह डर बैठ गया है की यदि इतने गंभीर मामले को फौरी करार दिया जाएगा तो आगे इसके क्या दुष्परिणाम होंगे | लोगो में अपनी सुरक्षा के प्रति चिंताए उपजाने लगी है |
कांग्रेस पार्षद यास्मिन शेरानी पर हमले के बाद का तनाव और उपद्रवकारी तत्वों का सडको पर लगभग एक घंटे तक कोहराम मचाते रहना आम आदमी को नागवार गुजर रहा है | लोग पुलिस प्रशासन की व्यवस्थाओं को भी सवालों के घेरे में ले रहे है | यह सत्य है की जिले के पुलिस कप्तान नवागत है, लेकिन लोगो का सवाल है की घटनाक्रम के दौरान अन्य अधिकारी क्या कर रहे थे | यह तो माना जा सकता है की मामला नियोजित नहीं था, लेकिन स्थिति की गंभीरता का आकलन नहीं कर पाना यदि पुलिस की विफलता नहीं है तो फिर इसे क्या कहा जा सकता है | आम शहरी कर्फ्यू को सम्पूर्ण शहर पर थोपे जाने और कर्फ्यू में ढील को लेकर की गई देरी को लेकर भी प्रश्न खड़े कर रहे है |
जिला कलेक्टर डॉ संजय गोयल के अवकाश से लोटने के पूर्व तक प्रशासनिक विफलता के एक से जुड़े एक निरुत्तर कर देने वाले लोगो के इतने सवाल है की कोई भी व्यक्ति प्रशासन के पक्ष में खड़े होकर सवाल्कार्ताओं को संतुष्ट नहीं कर सकता है | प्रशासनिक विफलता के इतर कर्फ्यू के दौरान पुलिस की ज्यादती के अनगिनत वाकये भी अब सामने आ रहे है | वृद्ध महिलाओं से लेकर व्यवसायियों तक ने पुलिस के अमानवीय रौब और लाठियों को झेला है | स्थानीय लक्कड़पीठा के एक युवा व्यवसायी को उसके घर से निकालकर इस कदर मारा गया की उसका हाथ टूट गया | स्थानीय राजस्व कालोनी में कीर्तन कर रही बुजुर्ग महिलाओं को लाठियों के दम पर दोड़ने को मजबूर किया गया | इंदिरा नगर में एक दूध विक्रेता का पूरा दूध सड़क पर उड़ेल दिया गया | इस तरह की घटनाओं का वर्णन करते समय आम शहरी जिस तरह के गुस्से और आवेश को प्रदर्शित कर रहा है यदि उसकी अनदेखी की गई तो यह आने वाले दिनों में भाजपा के लिए कितनी हानिकारक होगी ? इसका आकलन कर पाना मुश्किल है |
स्थानीय रोडवेज बस स्टेंड पर कपिल राठोड़ एवं उनके एक कर्मचारी को शूट करने वाले आततायियो ने उनके भाई विक्रम को भी गंभीर रूप से घायल कर दिया था | जिला चिकित्सालय में विक्रम के उपचार के दौरान विलंब को लेकर भारी नाराजगी उपज गई | विक्रम को इंदौर रेफर करने की चिकित्सकिय सलाह के बावजूद व्यवस्था की कमजोरी ने माहौल को और भी उग्र कर दिया | इस दौरान जिला चिकित्सालय में मात्र एक अनुविभागीय अधिकारी मोर्चा लड़ाते रहे | कोई भी जनप्रतिनिधि वहां नहीं पहुंचा | भाजपा संगठन के पदाधिकारियों और महापौर बाद में वहां पहुचे लेकिन तब तक आक्रोशित लोगो ने तोड़फोड़ मचा दी | लोगो में जनप्रतिनिधियों के प्रति उपजी यह नाराजगी इतनी अन्दर तक घर कर गई की इसका इजहार दुसरे दिन मृतक कपिल की अंतिम यात्रा से लेकर शमशान स्थल तक होता रहा |
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है की आम लोगो से लगाकर भाजपा के मददगार अनुषांगिक संगठनो में तमाम घटनाक्रम को लेकर भारी नाराजगी है यह किस तरह प्रकट होगी यह अभी आगे आने वाले दिनों में और भी खुलकर सामने आयेगा | लेकिन यदि समय रहते जिम्मेदार तत्वों को चिन्हित और दण्डित नहीं किया गया तथा घटना की गंभीरता से गैरवाफिक अफसरों को हटाया नहीं गया तो जिम्मेदार इस बात को भी नहीं भूले की लोकतंत्र में मतदान का अधिकार आम जनता का सबसे ताकतवर अस्त्र है और इसका कब और कहाँ इस्तेमाल करना है |जनता यह सब बखूबी जानती है |