उनके तेवरों की चर्चा ने उड़ा दी है जिले के पुलिस महकमे की नींद

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इमालवा – रतलाम | उनके आने से पहले उनके तेवरों की चर्चा ने जिले के पुलिस महकमे की नींद उड़ा दी है | जिले का पुलिस बल इन दिनों जाने वाले साहब से आने वाले साहब की कार्य शैली एवं बर्ताव की तुलना करने में व्यस्त है | दबे स्वरों में हो रही चर्चाओं का लब्बो-लुबाब यह है की आने वाले साहब बहुत ही सख्त मिज़ाज है | उनकी डिक्शनरी में क्षमा नाम का शब्द ही नहीं है | तुलना का महत्वपूर्ण बिंदु यह है की जाने वाले साहब शिकायत मिलने पर अपने मातहत का मात्र स्थानान्तरण कर बख्श देते थे, लेकिन आने वाले साहब सीधे निलंबन का तोहफा देकर ( डी ) विभागीय जाचं खडी कर देते है |
पुलिस अधीक्षक के रूप में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जीके पाठक शनिवार को रतलाम पहुचकर पदभार ग्रहण करने वाले है, लेकिन यहाँ पहुचने के पहले ही विभाग में उनके बारे में तमाम जानकारियाँ पहुच रही है | श्री पाठक का स्वभाव और कार्यशैली जिले के पुलिस फ़ोर्स में हाट – टापिक बन गया है | उनके बर्ताव का जो चित्र  उभरकर सामने आ रहा है,  उससे विभाग के लोगो की नींद उड़ गई है | विभाग में जारी चर्चाओं के अनुसार स्थानांतरित पुलिस कप्तान डॉ रमण सिंह सिकरवार की तरह ही आने वाले पुलिस कप्तान भी एक ईमानदार अधिकारी है | लेकिन दोनों का पनिशमेंट का सिस्टम एकदम भिन्न बताया जा रहा है | जाने वाले कप्तान डॉ रमण सिंह सिकरवार की वक्त – बेवक्त सेट पर दहाड़ गूंजती थी तो आने वाले साहब रूबरू होकर प्रतिदिन और कभी – कभी तो दिन में दो बार तक कांफ्रेंस के माध्यम से काम सौपते है |  पिछले दिए काम का फालो – अप लेने का नए साहब का सिस्टम भी पुराने साहब जैसा ही बताया जा रहा है, लेकिन काम में कमी पर नए साहब …सिर्फ नाराजगी व्यक्त करकर छोड़ देने के स्थान पर ……………पूरा बैंड बजा देते है | कागजी कार्यवाही हो या फ़ोर्स में कसावट का मामला आगामी दिनों का परिद्रश्य कैसा होगा ? इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की नए साहब सवेरे सात बजे से थाने पर अधिकारी तक की आमद को अनिवार्य मानते है और इसका सख्ती से पालन भी करवाते है | बताया जाता है की आने वाले साहब के मंदसौर के कार्यकाल में विभाग के दर्जनों लोगो को निलंबन का दंश लगा था और दो या तीन तो नोकरी से महरूम हो गए थे |
कुल मिलाकर बात यह है की पुलिस कप्तान डॉ रमण सिंह सिकरवार के कार्यकाल में ट्रांसफर की सजा पाकर जिला मुख्यालय से दूर रहने की पीड़ा भुगत रहे विभाग के कई तीस मारखां यह मान रहे थे की उनके जाने के बाद स्थिति बदलेगी | लेकिन वे ही लोग अब  हाय – री किस्मत कहकर अपने अरमानो की बारात निकलते देखने लगे है | भाई लोगो का दुःख यह है की सितमगर बदल गए है लेकिन सितम ढहना अभी और बाकी है |