क्या कलेक्टर डॉ गोयल सरकारी अस्पताल को निकाल पायेंगे आईसीयु से

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इमालवा – रतलाम | जिले में आईसीसीयु में पहुँच गई स्वास्थ सेवाओं को पटरी पर लाने के प्रयासों पर जिला प्रशासन को कड़ी मशक्कत करना पड रही है | इस प्रयास के दौरान चिकित्सको और प्रशासन के मध्य तलवारे खीच गई है | जिला कलेक्टर ड्यूटी पर समय से उपस्थिति नहीं होने वाले चिकित्सको पर कठोर कार्रवाई के संकेत दे रहे है | दूसरी तरफ चिकित्सको का एक वर्ग आन्दोलन के माध्यम से सेवाओं को ठप्प करने के प्रयास कर रहा है | कलेक्टर स्वयं भी चिकित्सक है ऐसे में यह लड़ाई कहा तक चलेगी इस पर सभी की नज़रे जमी हुई है |

रतलाम में कलेक्टर के रूप में तैनाती के साथ ही प्रशासनिक व्यवस्थाओं में कसावट के काम को तरजीह देकर डीएम डॉ संजय गोयल आम आदमी के मन में रतलाम के अच्छे भविष्य की आशा जगाने में सफल हो गए है | चुनाव निपटते ही डॉ गोयल ने शासकीय विभागों में अनुपस्थिति और अनियमितताओं पर ताकत से प्रहार प्रारम्भ कर दिए है | इससे खोफ का माहोल बनने के साथ ही वर्किंग कल्चर में भरोसा रखने वालो को प्रोत्साहन भी मिला है | शासन के कई विभागों के आकस्मिक निरिक्षण होने से व्यवस्था में एकदम बदलाव आया है | लेकिन सबसे ज्यादा समस्या स्वास्थ्य महकमे में सामने आ रही है |

एक समय था जब रतलाम के शासकीय जिला चिकित्सालय के नाम को प्रदेश ही नहीं अपितु रतलाम से लगे राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रो तक बड़े ही आदर के साथ लिया जाता था | 550 बेड के इस अस्पताल में कई ऐसे चिकित्सक पदस्थ रहे है जिनके नाम को लोग भगवान् के नाम की तरह श्रद्धा से आज भी याद करते है | सुविधाओं के अभाव की बात तब भी होती थी लेकिन समर्पण भाव के कारण कम सुविधाओं के बावजूद बेहतर उपचार होता था, अपनी क्षमताओं से कई गुना अधिक समय और काम करके यहाँ के चिकित्सक मानवीय संवेदनाओं के पैरोकार कहलाते थे | आम आदमी हो या वीआइपी सभी रतलाम के सरकारी अस्पताल को प्राथमिकता देते थे | जिला प्रशासन हो या जनप्रतिनिधि किसी को कभी कुछ बोलने की जरुरत नहीं पड़ती थी | क्योंकि तब यह माना जाता था की स्वास्थ्य सेवाओं का सुचारू होना मतलब संवेदनशील प्रशासन की पहली पहचान |

मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत चिकित्सकीय पेशे और रतलाम के जिला चिकित्सालय के इस यशोगान को पिछले लम्बे समय से ग्रहण सा लग गया है | चिकित्सको में समर्पण का भाव अब बीते समय की बातें हो गई है | अपने हिस्से के काम को पूरा करने के स्थान पर सुविधाओं और स्टाफ की कमी का बहाना यहाँ की प्रमुख समस्या बन गई है | नान वर्किंग कल्चर और नकारात्मकता ने इस नामचीन अस्पताल की प्रतिष्ठा को धुल धूसरित कर दिया है |

तमाम नकारात्मक परिस्थितियो के बावजूद यहाँ पदस्थ कई चिकित्सक आज भी पुरे मनोयोग से अपनी ड्यूटी कर रहे है और करना चाहते भी है | लेकिन उन्हें सहयोग मिलने के स्थान पर प्रताड़ना मिलती है | लाईलाज होती जा रही जिला चिकित्सालय की इस बीमारी की पकड़ रतलाम के जिलाधीश डॉ संजय गोयल ने की और उपचार भी तत्काल प्रारम्भ कर दिया |
मक्कारों को यह नागवार गुजर रहा है, मामला आमने – सामने की जंग में बदलने की कोशिशे हो रही है | कलेक्टर स्वयं एक चिकित्सक है और बीमारी के वाईरस उनकी निगाहों में आ गए है | अब उनका एंटीबायोटिक काम करेगा या नहीं | इस पर सभी की निगाहें जमी हुई है | माना जा रहा है की एक बार तो टकराव की स्थिति बनेगी, लेकिन कलेक्टर के एंटीबायोटिक प्रापर डोज़ में मिलते रहे तो इस चिकित्सालय की व्यवस्था बदल सकती है |