वैसे तो हर महीने पूर्णिमा होती है, लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व कुछ और ही है। अश्विन माह के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस बार शरद पूर्णिमा 15 अक्टूबर, शनिवार को है। ऐसा विश्वास है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत टपकता है और ये किरणें हमारे लिए भी बहुत लाभदायक होती हैं। ज्योतिष की मान्यता अनुसार पूरे वर्ष में सिर्फ इसी दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर धरती पर अपनी अद्भुत छटा बिखेरता है। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत समीप आ जाता है।
स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण
आयुर्वेद में भी शरद ऋतु का वर्णन किया गया है। इसके अनुसार शरद में दिन बहुत गर्म और रात बहुत ठंडी होती हैं। इस ऋतु में पित्त या एसिडिटी का प्रकोप ज्यादा होता है जिसके लिए ठंडे दूध और चावल को खाना अच्छा माना जाता है। यही वजह है कि शरद ऋतु में दूध मिश्रित खीर बनाने का प्रावधान है। साथ ही इस खीर को ऐसे स्थान पर रखना चाहिए जहां इस पर चंद्रमा की किरणें पड़ें जिससे वह अमृतमयी हो जाए। इस खीर को खाने से न जाने कितनी बड़ी-बड़ी बीमारियों से निजात मिल जाता है। खासकर दमा और सांस की तकलीफ में यह खीर अमृत समान है। शरद पूर्णिमा की रात चांद की किरणें धरती पर छिटककर अन्न-वनस्पति आदि में औषधीय गुणों को सींचती हैं इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से शरद पूर्णिमा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
अगर शरद पूर्णिमा को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो माना जाता है कि इस दिन से मौसम में परिवर्तन होता है और शीत ऋतु की शुरुआत होती है। इस दिन खीर खाने को माना जाता है कि अब ठंड का मौसम आ गया है इसलिए गर्म पदार्थों का सेवन करना शुरु कर दें। ऐसा करने से हमें ऊर्जा मिलती है।
लक्ष्मी की उपासना
हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस दिन कोजागर व्रत भी किया जाता है। कोजागर का शाब्दिक अर्थ है “कौन जाग रहा है।” ऐसा विश्वास है कि इस रात देवी लक्ष्मी स्वंय यह देखने आती हैं कि कौन जाग रहा है और कौन नहीं। माना जाता है कि जो श्रद्धालु, शरद पूर्णिमा के दिन, रात भर जागकर महालक्ष्मी की उपासना करते हैं मां उन्हें आशीर्वाद देती हैं और उनका जीवन खुशियों से भर देती हैं। माना जाता है कि इसी दिन श्रीकृष्ण रासलीला करते थे। इसी वजह से वृदांवन में इस त्योहार को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा को ‘रासोत्सव’ और ‘कामुदी महोत्सव’ भी कहा जाता है।