मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि वृक्षों को अवैज्ञानिक तरीके से काटकर पूरी मानव सम्पदा को खतरे में डाल दिया गया है। नर्मदा सेवा यात्रा प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर दुनिया को बचाने का विनम्र प्रयास है। अलग-अलग दृष्टिकोण से नदियों के संरक्षण के लिए सक्रिय व्यक्तियों, संस्थाओं और संगठनों को एक मंच पर लाकर उनके अनुभवों, विचारों को मूर्तरूप देने की कोशिश नर्मदा यात्रा के माध्यम से की जा रही है। प्रदेश में नदी संरक्षण की समय रहते पहल शुरू हुई है। समाज के सभी वर्गों का सक्रिय सहयोग मिल रहा है। नर्मदा की इस चिन्ता से यह अविरल बहेगी। जिस प्रकार समाज के सभी वर्ग नर्मदा यात्रा में शामिल हो रहे हैं वह समाज की जल-संरक्षण के प्रति चिन्ता को प्रकट करता है। श्री चौहान सीहोर जिले के ग्राम बांद्राभान में नर्मदा सेवा यात्रा के आगमन पर जन-संवाद कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में प्रख्यात् पर्यावरणविद् तथा विज्ञान और पर्यावरण केन्द्र नई दिल्ली की निदेशक पद्मश्री सुश्री सुनीता नारायण सहित विभिन्न जन-प्रतिनिधि भी मौजूद थे।
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि नर्मदा को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए अब समय आ गया है कि हम अपनी पूजा पद्धति में भी बदलाव लाये। पूजन सामग्री, प्लास्टर ऑफ पेरिस की बनी वस्तुएँ तथा अन्य ऐसी सामग्री जिससे जल प्रदूषित होता है, नर्मदा में न डाले। श्री चौहान ने संत-समाज से अनुरोध किया कि धार्मिक विधियों में ऐसे कार्यों का परित्याग करवाने में अपनी धर्म शक्ति का उपयोग करें ताकि नदियों में जल समाधि की प्रथा समाप्त हो। नर्मदा का अभिषेक नर्मदा के जल से ही किया जाए। जहाँ भी आवश्यक होगा सरकार भी इसमें मदद करेगी।
मुख्यमंत्री ने किसान भाइयों से कहा कि – सरकारी जमीन पर वृक्ष वन और उद्यानिकी विभाग लगायेंगे लेकिन नर्मदा को हरी चुनरी पहनाने के लिए किसान अपनी जमीन पर फलदार वृक्ष लगाये। जब तक वृक्षों में फल आयेंगे, तब तक सरकार 20 हजार रू.प्रति हेक्टेयर की दर से मुआवजा देगी। पौधे लगाने पर भी 40 प्रतिशत की सब्सिडी दी जाएगी। वृक्षारोपण के लिए गड्डा खोदने के लिए मजदूरी भी सरकार देगी।
पर्यावरणविद् सुश्री सुनीता नारायण ने अपने संबोधन में कहा कि मध्यप्रदेश का यह सौभाग्य है कि यहाँ के नागरिकों को श्री शिवराज सिंह चौहान जैसे मुख्यमंत्री मिले हैं जो नदी संरक्षण यात्रा आयोजित कर सभी को पर्यावरण संरक्षण और नदी संरक्षण के लिये यात्रा आयोजित कर जन-जागरण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अधिकांशतः यह होता है कि जब नदी नष्ट या मृत हो जाती है तथा वायु प्रदूषण जानलेवा स्तर पर पहुँच जाता है, तब लोग पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होते हैं। उन्होंने कहा कि जब भी भौतिक विकास होता है, तो पर्यावरण और नदियों को गंभीर क्षति पहुँचती है। आज जरूरत है भौतिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण को भी संरक्षित रखने की।
कार्यक्रम में श्योपुर, ग्वालियर और दिमनी से विभिन्न नदियों के कलश लाकर नर्मदा यात्रा कलश के साथ स्थापित किये गये।