एक बार सभी देवताओं ने निर्णय लिया की पृथ्वी लोक पर जो सबसे भले लोग हैं और खूब भलाई का काम करते हैं उन्हें इसका इनाम दिया जाना चाहिए। इस काम की जिम्मेदारी सौंपी गई वरुण देवता को। वरुण देव धरती पर प्रकट हुए और एक बूढ़े कमजोर से भिखारी का वेश धारण किया।
आधी रात का समय था। वरुण देवता भिखारी के वेश में एक छोटी सी झोपड़ी के बाहर पहुंचे और दरवाजा खटखटाया। वो कान्ता देवी का घर था। कान्ता ने दरवाजा खोला, उसने देखा कि एक बहुत ही कमजोर सा बूढ़ा भिखारी उसके दरवाजे पर खड़ा है। वो बोली – अरे बाबा जी ठंड में इतनी रात में आप कहां भटक रहे हैं, अंदर आइए और आराम कीजिए। बूढ़ा अंदर आ गया। वो सर्दी से कांप रहा था और सही से बात भी नहीं कर पा रहा था।
कान्ता देवी बहुत गरीब थी। उसका पति गाँव से बाहर गया हुआ था। उसने अपने पति का खाना तैयार करके रखा हुआ था, वो खाना भी बूढ़े भिखारी को खिला दिया। बूढ़े के कपड़े बहुत ज्यादा फटे हुए और सड़े सड़े गले से थे। कान्ता अंदर गई और एक धोती लेकर आई। वो धोती भी फटी हुई थी। वो बोली – बाबाजी मेरे पति की एक यही धोती है। मैं इसे सिल देती हूँ, आप ओढ़ लेना। धोती सिल कर उसने बुड्ढे को दे दी। बुड्ढे को देने के लिए अपने पति का एक कुर्ता भी ले आई, वो कुर्ता और भी बहुत ज्यादा फटा हुआ था। वह उसे सिलने बैठ गई और सिलते सिलते ही सुबह हो गई। सुबह को कुर्ता उसने बाबा को दे दिया, कहा कि बाबा जी इसे पहन लीजिए। सुबह हो गई है, अब आप नाश्ता करके चले जाना। सुबह को उसने बड़े प्रेम से बूढ़े को खाना खिलाया।
वरुण देव कान्ता देवी से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उसको आशीर्वाद दिया और कहा – बेटी अब मैं चलता हूँ। लेकिन सुनो, आज सुबह तुम जो कुछ काम करना शुरू करोगी शाम तक वही होता रहेगा। यह कहकर वरुण देव चले गए। कान्ता ने उनकी बात को अनसुना कर दिया और कुछ ध्यान नहीं दिया। वरुण देव के जाने के बाद उसे ध्यान आया की एक धोती अपने पति की बाबा को दे दी और जो दूसरी धोती है वो भी फटी हुई है। उसे अपनी वो धोती भी ठीक करनी थी। वो उस कपड़े को नापने बैठ गई कि देखूं तो इसमें कितना कपड़ा सही बचा है। लेकिन एक बड़ी अजीब बात हुई ,जैसे जैसे वह धोती को नापती जाती वैसे वैसे धोती बड़ी होती जाती। उसे लग रहा था कि यह धोती तो द्रोपदी की साड़ी की तरह बढ़ती ही जा रही है। वो नापती जा रही थी लेकिन कपड़ा खत्म ही नहीं हो रहा था। इस तरह शाम हो गई और उसके घर में ढेर सारा कपड़ा इकठ्ठा हो गया। शाम होते ही यह काम खत्म हो गयाl
उसका पति जब बाहर से वापस आया तो कान्ता ने अपने पति को सारी बात बताई। पति ने कपड़े को ले जाकर बाजार में बेचा और काफी सारा रुपया कमाया। धीरे-धीरे यह बात सारे गांव में फैल गई। कान्ता की पड़ोसन लीला देवी बहुत चालाक और लालची थी। लीला ने जब यह खबर सुनी तो फटाफट कान्ता के पास पहुंच गई और सारी बात उससे पूछी। कान्ता ने लीला को सब बता दिया। लीला के मन में लालच आ गया। सोच रही थी जल्दी ही ऐसा एक मेहमान मेरे घर भी आए तो मजा आ जाएगा।
कुछ दिनों के बाद आधी रात के समय वरुण देवता ने वैसा ही भिखारी का रूप धारण करके लीला का दरवाजा खटखटाया। वह तो पहले से ही इंतजार में थी। फटाफट दरवाजा खोला और अपने चेहरे पर बनावटी हंसी दिखाते हुए बोली – अरे आइये आइये महाराज और उसे अंदर घर में ले गई। लीला ने फटाफट खाना उतारा और भिखारी के आगे लगा दिया। उसको जैसे जैसे कान्ता ने बताया था वह बिल्कुल वैसे ही नकल करना चाहती थी। उसने अपने पति की एक साबुत धोती को पहले फाड़ा, फिर सिल कर भिखारी को पहनने के लिए दे दी। जबकि उसके घर में कई अच्छी धोतिया रखी हुई थी। लेकिन वो तो अपनी पड़ोसन की पूरी नकल ही करती जा रही थी। उसने भिखारी को कहा – बाबा लेट जाइए सुबह जाना, मैं सुबह होने पर आपको खाना भी खिलाऊंगी। वह वरुण देव को झूठ मूठ का प्यार दिखा रही थी।
सुबह होने पर वरुण देव बोले – बेटी अब मैं जा रहा हूँ। वो बोली नहीं बाबा जी अभी नहीं, पहले कुछ खा लीजिए वरना रास्ते में आपको भूख लगेगी। उसने वरुण देव को खाना खिलाया। वरुण देवता ने पहले की तरह इस बार भी कहा की बेटी अब मैं जाता हूँ लेकिन एक बात सुनो। मेरे जाने के बाद तुम जो काम शुरू करोगी शाम तक वही होता रहेगा। यह कहकर वरुण देवता उसके घर से चले गए।
देवता के जाने के बाद लीला ने अपने पति की एक धोती को नापना चाहा लेकिन तभी उसकी गाय जोर जोर से बोलने लगी क्योंकि उसको बहुत प्यास लगी थी। लीला ने सोचा कि पहले में इस गाय को ही पानी पिलाती हूँ नहीं तो यह बोलती ही रहेगी, फिर आकर आराम से पूरे दिन धोती को नापती रहूँगी। वो कुएं के पास गई और कुएं से पानी खींचना शुरू कर दिया। वो कुए की रस्सी को खींचती ही जा रही लथी लेकिन रस्सी खत्म ही नहीं हो रही थी। खींचती गई खींचती गई लेकिन रस्सी खत्म ही नहीं हुई। बाल्टी ऊपर ही नहीं आ रही थी क्योंकि वरुण देवता तो यही आशीर्वाद देकर गए थे कि जो काम शुरू करोगे शाम तक वही होता रहेगा। शाम तक रस्सी खींच खींच के लीला देवी का बुरा हाल हो गया, रस्सी उसके हाथ से छूट भी नहीं रही थी। शाम होने पर ही बाल्टी ऊपर आई लेकिन लीला का इतना बुरा हाल हो गया कि वह थकान से बेहोश होकर वहीं गिर पड़ी।