सबरीमला फैसला: केरल में संगठनों और श्रद्धालुओं की धड़कने बढ़ीं

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उच्चतम न्यायालय द्वारा सबरीमला मंदिर में सभी आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश की इजाजत के अपने फैसले की समीक्षा के मामले में गुरुवार को फैसला सुनाए जाने से पूर्व केरल में राजनीतिक दलों, दक्षिणपंथी संगठनों और श्रद्धालुओं की धड़कनें तेज हो गई हैं। केरल में पिछले साल शीर्ष अदालत के आदेश को लागू करने के माकपा नीत वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार के फैसले को लेकर श्रद्धालुओं और दक्षिणपंथी संगठनों के विरोध प्रदर्शन से माहौल गर्मा गया था।

उच्चतम न्यायालय का फैसला मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की अगुवाई वाली एलडीएफ सरकार के लिए भी अहम है क्योंकि बस तीन दिन बाद सबरीमला में वार्षिक तीर्थयात्रा शुरू होने जा रही है। केरल में पथनमथिट्टा जिले के पश्चिमी घाटी पर संरक्षित वनक्षेत्र में स्थित इस पहाड़ी धार्मिक स्थल के द्वार 16 नवंबर की शाम को दो महीने तक चलने वाले मंडलम मकराविलाक्कू के लिए खोले जाएगे। विजयन ने निर्बाध तीर्थयात्रा सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न विभागों द्वारा की जा रही तैयारियों का शनिवार को जायजा लिया था।

पुलिस महानिदेशक लोकनाथ बेहरा ने कहा है कि इस तीर्थयात्रा मौसम के दौरान कड़ी सुरक्षा होगी। दो महीने की तीर्थयात्रा के दौरान सबरीमला में भगवान अयप्पा के मंदिर और उसके आसपास 10,हजार से अधिक पुलिसकर्मी तैनात किए जाएंगे। प्रदेश भाजपा ने बुधवार को उम्मीद जताई कि समीक्षा याचिकाओं पर आदेश श्रद्धालुओं के पक्ष में आएगा जबकि मंदिर का प्रबंधन संभालने वाले स्वायत्त निकाय त्रावणकोर देवस्वओम बोर्ड ने लोगों से फैसले को स्वीकार करने की अपील की है, चाहे यह (फैसला) जो भी हो।

शीर्ष अदालत ने 28 सितंबर, 2018 को उस पाबंदी को हटा लिया था जिसमें 10 से 50 साल तक की उम्र की महिलाओं के अयप्पा मंदिर में प्रवेश पर रोक थी और सदियों पुरानी इस धार्मिक परंपरा को अवैध और असंवैधानिक करार दिया था।