बगुला भगत

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सुबह होने पर जैसे ही सूरज की झिलमिलाती किरणे पानी पर पड़ीं तो तालाब की छोटी छोटी मछलियां तथा अन्य जीव धूप का आनन्द लेने के लिए सतह पर आने लगे। उन्होंने देखा की उनका दुश्मन बगुला तालाब के किनारे एक टांग पर ऐसे खड़ा है जैसे कि कोई बहुत बड़ा सिद्ध पुरुष ध्यान लगाए बैठा हो। बिल्कुल शांत।

मछलियां दूर से ही उस पर नजर रखे हुए थीं तथा अपनी खेल-कूद कर रही थीं। कई घण्टे बाद भी बगुला ऐसे ही खड़ा रहा। वो अपने पास से गुजरने वाले जीवों पर हमला भी नही कर रहा था। सभी को हैरानी हुई कि इस बगुले को आखिर हो क्या गया है, इसकी तबीयत ठीक तो है!

कुछ नौजवान केकड़े और मछलियां इकट्ठे हो कर बगुले के पास पहुँचे और पूछा – ओ चाचा, ओ बगुले चाचा। क्या बात है आज बिल्कुल शांत खड़े हो एक टांग पे। तबीयत तो ठीक है ना?

बगुला बोला – देखो भाई लोगों आज से मैंने पूजा पाठ शुरू कर दी है और मैं भगवान का भगत बन गया हूँ। मैंने कल सपने में देखा कि दुनिया खत्म होने वाली है। इसलिये अपने जीवन का बचा हुआ समय में भगवान की भक्ति में बिताऊँगा। और सुनो – सबसे पहले यह तालाब ही सूखेगा, मेरी बात मानो तो इस तालाब को छोड़कर किसी दूसरी जगह चले जाओ।

बगुले की बात सुनकर तालाब के बाकी सभी जीव भी वहाँ इकट्ठा हो गए।
वे बोले : बगुले चाचा क्या आप सच बोल रहे हो? हमें उल्लू तो नही बना रहे।
बगुला बोला – अरे भई मैं झूठ क्यों बोलुँगा? मैंने तो मीट मछली खाना बिल्कुल त्याग दिया है। तुम लोग देख ही रहे हो अब मैं तुम्हारा शिकार भी नहीं कर रहा हूँ।

बगुले की मीठी मीठी बातों से सबको यकीन हो गया कि वो सच बोल रहा है और भगत बन गया है। सब चिंता में पड़ गए की तालाब सूख गया तो हमारा क्या होगा, हमारे बच्चों का क्या होगा। वे बगुले से बोले कि बगुले भगत चाचा आप ही हमारी मदद कीजिये।
बगुला बोला – मैं जब रात को ध्यान लगाता हूँ तो भगवान मेरे सामने प्रकट हो कर मुझसे बात करते हैं। आज रात भगवान से मैं आप लोगों के लिए बात करूँगा। भगवान जो भी कहेंगे वो मैं आपको बता दूँगा। सभी जीव बगुले भगत के पैर छूकर लौट गए।

अगले दिन बगुले ने आकर बताया कि भगवान ने उससे कहा है उत्तर दिशा में बारह कोस की दूरी पर एक और जंगल है। वहाँ एक बड़ा तालाब है। आप सब यदि वहाँ चले जाओ तो आपकी जान बच जाएगी। अरे इतनी दूर हम कैसे जाएँगे? बिना पानी के तो ज़रा सी देर में हमारा दम निकल जाएगा। सारे के सारे यही सोच रहे थे।

मेंढक बोला – अगर हम उत्तर दिशा की ओर सुरंग बना लें तो काम बन सकता है।
केकड़ा बोला – सुरंग बनाना कोई आसान काम नही है। इतनी लम्बी सुरंग कौन खोदेगा।
बगुला भगत चाचा हमारी मदद कर सकते हैं। अगर वो हमें अपनी पीठ पर बैठा कर दूसरे तालाब में छोड़ आएं तो। – एक मछली ने कहा।

मछली की बात सुनकर बगुला बोला कि भाई मैं तो अब बूढ़ा हो गया हूँ। आप सबको वहाँ ले जाना मेरे लिए बहुत कठिन काम होगा। लेकिन एक सच्चा भगत होने के नाते दूसरों की भलाई करना मेरा परम् कर्तव्य है। मैं एक एक करके आप लोगों को वहाँ छोड़ आऊँगा। चलो आज से ही यह शुभ काम शुरू करते हैं। आओ कोई एक मेरी पीठ पर बैठ जाओ।

एक चतुर मछली फुर्ती दिखाते हुए उछल कर बगुले की पीठ पर बैठ गई। बगुला उसे लेकर उड़ गया।

इसी तरह कई दिन बीत गए। बगुला किसी एक को अपनी पीठ पर बैठाता और उड़ जाता। कुछ घण्टे बाद फिर आता और किसी और को लेकर उड़ जाता। कभी मछली, कभी मेंढक तो कभी केकड़ा। इस तरह वो रोज तीन-चार चक्कर लगा देता।

एक दिन एक जवान मोटा केकड़ा बगुले की पीठ पर सवार था। बगुला सोच रहा था आज तो मजा आजाएगा। यह केकड़ा इतना स्वादिष्ट निकलेगा की पूछो ही मत। तभी एक घाटी के ऊपर से गुजरते हुए केकड़े को बहुत सारे मछलियों, केकड़ों और मेंढकों के कंकाल पड़े दिखाई दिये। वो बगुले की पूरी चाल समझ गया, बिना समय गवाएं उसने तुरंत बगुले की गर्दन दबोच ली।

बगुला चिल्लाया – अरे केकड़े भाई क्या कर रहे हो गिर जाओगे!

केकड़ा बोला – कपटी बगुले, तुरंत वापस मुझे मेरे तालाब में ले चल। वरना मैं तो मरूँगा ही, लेकिन तेरी गर्दन मरोड़ कर मैं पहले तुझे मार डालूंगा। मेरी समझ में सब आगया है। अब तू बूढ़ा हो गया है, शिकार अब तुझसे होता नही। इसलिये भगत बनने का नाटक करके भोले भाले जीवों को यहाँ लाकर खा गया। जान प्यारी है तो चल वापस। यह कहकर केकड़े ने बगुले की गर्दन जोर से दबाई।

बगुला फड़फड़ाते हुए वापस पलटा और उसी तालाब में आगया। उसे लग रहा था केकड़ा उसे छोड़ देगा। लेकिन केकड़े ने पीठ पर से उतरने से पहले बगुले की गर्दन अपने धारदार नाखूनों से काट डाली। बगुले का वहीं अन्त हो गया। फिर केकड़े ने सबको बगुले की सारी बात बताई। केकड़े को सबने बहुत बहुत धन्यवाद किया।