डगमगाती अर्थव्यवस्था का ऐसा भी साइड इफेक्ट होगा, आपने ना सोचा होगा। गो-एयर एयरलाइंस ने फैसला किया है कि कैबिन क्रू की नौकरी सिर्फ महिलाओं को दी जाएगी। दलील ये है कि पुरुषों का वज़न ज़्यादा होता है और इसलिए हवाई जहाज़ में ईंधन भी ज़्यादा खर्च होता है।
गिरते रुपये का एक ऐसा साइड इफेक्ट जो सिर्फ पुरुषों के हिस्से आया है। गो एयर में अब पुरुषों को कैबिन…
डगमगाती अर्थव्यवस्था का ऐसा भी साइड इफेक्ट होगा, आपने ना सोचा होगा। गो-एयर एयरलाइंस ने फैसला किया है कि कैबिन क्रू की नौकरी सिर्फ महिलाओं को दी जाएगी। दलील ये है कि पुरुषों का वज़न ज़्यादा होता है और इसलिए हवाई जहाज़ में ईंधन भी ज़्यादा खर्च होता है।
गिरते रुपये का एक ऐसा साइड इफेक्ट जो सिर्फ पुरुषों के हिस्से आया है। गो एयर में अब पुरुषों को कैबिन क्रू की नौकरी नहीं मिलेगी। मगर कसूर उनकी काबिलियत नहीं वज़न का है। एयरलाइंस के मुताबिक फ्लाइट पर हर अतिरिक्त किलो का मतलब है हर घंटे तीन रुपये का ज़्यादा खर्च। औसतन महिलाओं का वज़न पुरुषों से 15-20 किलो कम होता है यानी सिर्फ पुरुषों को फ्लाइट से बाहर करने का मतलब है सालाना ढाई से तीन करोड़ की बचत।
गो एयर के 330 कैबिन क्रू में से फिलहाल 40 फीसदी पुरुष हैं। इनकी नौकरी तो नहीं जाएगी, लेकिन गो एयर का इरादा अगले सात साल में 80 विमान खरीदने का है। यानी इसके लिए रिक्रूट होने वाले करीब 2000 के स्टाफ में सिर्फ महिलाएं ही होंगी। अपनी लो-कॉस्ट एयरलाइंस को लो-कॉस्ट रखने के लिए गो एयर कंपनी दूसरे जतन भी कर रही है। विमानों का वज़न हलका करने के तरीके खोजे जा रहे हैं। विमानों के वॉटर टैंक्स को सिर्फ 60 फीसदी तक भरा जा रहा है। यहां तक कि विमान के भीतर मिलने वाली मैगज़ीन का साइज़ तक छोटा किया गया है।
लेकिन इस पर कुछ सवाल भी उठ खड़े हुए हैं। क्या सिर्फ मुनाफे के लिए रोज़गार में पुरुष और महिलाओं के बीच भेद सही है? अगर रुपये की हालत और पतली होती है तो क्या इस तरह के नियम यात्रियों के लिए भी बनाए जाएंगे? क्या बाकी एयरलाइंस भी इसी तरह के नियम लागू करेंगी? जवाब सरकार को देना है, लेकिन गो-एयर का ये कदम इस बात की निशानी ज़रूर है कि देश के एविएशन सेक्टर में ऑल इज़ वेल नहीं है।