पुराणों के अनुसार पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने के लिए गया से श्रेष्ठ स्थान कोई दूसरा नहीं है। कहा जाता है कि गया में स्वयं भगवान विष्णु पितृ देवता के रूप में निवास करते हैं। गया तीर्थ में श्राद्ध कर्म पूर्ण करने के बाद भगवान विष्णु के दर्शन करने से मनुष्य पितृ, माता और गुरु के ऋण से मुक्त हो जाता है।
पूर्ण श्रद्धा और विधि-विधान के साथ श्राद्ध और तर्पण करने से पितृ, देवता, गंधर्व, यक्ष आदि अपना शुभ आशीर्वाद देते हैं, जिससे मनुष्य के समस्त पापों का अंत हो जाता है। गया तीर्थ में पितरों का श्राद्ध और तर्पण किए जाने के बारे में एक प्राचीन कथा का उल्लेख पुराणों में मिलता है। कथा के अनुसार, गयासुर नाम के एक असुर ने घोर तपस्या करके भगवान से आशीर्वाद प्राप्त कर लिया।
श्राद्ध स्थल जहां मिलती है प्रेत योनीसे मुक्ति
भगवान से मिले आशीर्वाद का दुरुपयोग करके गयासुर ने देवताओं को ही परेशान करना शुरू कर दिया। गयासुर के अत्याचार से दुःखी देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण ली और उनसे प्रार्थना की कि वह गयासुर से देवताओं की रक्षा करें। इस पर भगवान विष्णु ने अपनी गदा से गयासुर का वध कर दिया। बाद में भगवान विष्णु ने गयासुर के सिर पर एक पत्थर रख कर उसे मोक्ष प्रदान किया।
कहते हैं कि गया स्थित विष्णुपद मंदिर में वह पत्थर आज भी मौजूद है। भगवान विष्णु द्वारा गदा से गयासुर का वध किए जाने से उन्हें गया तीर्थ में मुक्तिदाता माना गया। कहा जाता है कि गया में यज्ञ, श्राद्ध, तर्पण और पिंड दान करने से मनुष्य को स्वर्गलोक एवं ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। गया के धर्म पृष्ठ, ब्रह्म सप्त, गया शीर्ष और अक्षय वट के समीप जो कुछ भी पितरों को अर्पण किया जाता है, वह अक्षय होता है।
गया के प्रेतशिला में पिंडदान करने से पितरों का उद्धार होता है। पिंडदान करने के लिए काले तिल, जौ का आटा, खीर, चावल, दूध, सत्तू आदि का प्रयोग किए जाने का विधान है। अगर किसी मनुष्य की मृत्यु संस्कार रहित दशा में अथवा किसी पशु, चोर, सर्प या जंतु के काटने से हो जाती है, तो गया तीर्थ में उस मृत व्यक्ति का श्राद्ध कर्म करने से वह बंधनमुक्त होकर स्वर्ग को गमन करता है, इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए।
गया में श्राद्ध कर्म करने के लिए दिन और रात का कोई विचार नहीं है। दिन या रात में किसी भी समय श्राद्ध कर्म और तर्पण किया जा सकता है। गया के अलावा भारत की पावन भूमि में ऐसे कई स्थान हैं, जहां लोग पितृदोष की निवृत्ति के लिए अनुष्ठान कर सकते हैं। जैसे, गंगा सागर तथा महाराष्ट्र में त्रयंबकेश्वर, हरियाणा में पिहोवा, यूपी के गढ़गंगा, उत्तराखंड में हरिद्वार आदि भी श्राद्ध कर्म के लिए उपयुक्त स्थल बताए गए।