भोपाल। लंबे समय बाद सामने आईं मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलों पर फिर विराम लग गया है। बीजेपी की तीसरी बार सरकार बनने के बाद सवा साल से कैबिनेट में 11 पद खाली पड़े हैं, जिन्हें भरने के लिए पार्टी के नेता लंबे समय से दबाव बना रहे थे। अब लालबत्ती की आस में बैठे तमाम नेताओं की उम्मीदों पर एक बार फिर पानी फिर गया है।
इसकी वजह ये बताई गई है कि मंत्री पद के दावेदार अधिक हैं और पद कम, जिसके चलते चंद लोगों को उपकृत कर सरकार ज्यादा विधायकों की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहती है। कुछ समय पहले शिवराज सिंह चौहान द्वारा कैबिनेट में नए चेहरे शामिल करने के संकेत दिए गए थे। सरकार कुछ चुनिंदा लोगों को निगम-मंडल में जरूर नियुक्ति देगी, वह भी ऐसे नेताओं को जो चुनावी राजनीति से दूर रहेंगे ।
पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्र बताते हैं कि सरकार फिलहाल मंत्रिमंडल विस्तार जैसा जोखिम नहीं उठाना चाहती है। इसकी वजह ये है कि कैबिनेट में सिर्फ 11 पद खाली हैं और दावेदारों की संख्या ज्यादा है।
अपनों के लिए लगा रहे जोर
इसे बनाया आधार-पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के भतीजे सुरेंद्र पटवा और पूर्व सीएम कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी कैबिनेट में हैं। सुरेंद्र दो बार के ही एमएलए हैं।
विश्वास सारंग: पूर्व सांसद और वरिष्ठ नेता कैलाश सारंग बेटे विश्वास के लिए प्रयासरत।
वजह-विश्वास दो बार के विधायक हैं
ओमप्रकाश सखलेचा: पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र सखलेचा जावद से चुने गए बेटे ओमप्रकाश के लिए प्रयासरत।
वजह-तीसरी बार विधायक बने हैं।
निर्मला भूरिया: वरिष्ठ आदिवासी नेता दिलीप सिंह भूरिया बेटी निर्मला के लिए दबाव बना रहे हैं।
वजह-पूर्व में राज्य मंत्री रह चुकी हैं और आदिवासी कोटा चाहती हैं।
जालम सिंह: पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल भाई जालम सिंह को कैबिनेट में भेजना चाहते हैं।
वजह-ओबीसी कोटे से लालबती की मांग।
हर्ष सिंह: विंध्य से पूर्व मुख्यमत्री गोविंद नारायण सिंह के बेटे हर्ष के लिए ठाकुर लाबी लगी हुई है।
वजह- क्षेत्र और सवर्ण कोटे की दुहाई।
राजेंद्र पांडे: लंबे समय तक सांसद रहे लक्ष्मीनारायण पांडे जावरा विध्ाायक बेटे राजेंद्र को मंत्री बनवाना चाहते हैं।
वजह- क्षेत्र से कैबिनेट में प्रतिनिधित्व को बढ़ावा।
जितेंद्र: केंद्रीय मंत्री थावरचंद्र गेहलोत पहली बार विधायक (आलोट) बने बेटे जितेंद्र को कैबिनेट भेजना चाहते हैं।
वजह-अनसूचित जाति कोटे का सहारा।
नीना वर्मा: धार से दूसरी बार जीती नीना वर्मा को मंत्री बनवाने के लिए विक्रम वर्मा जुटे हुए हैं।
वजह: महिला कोटे से मंत्री की संख्या के लिहाज से।
कतार में तो ये भी हैं
-कैलाश चावला: वरिष्ठ भी हैं कई बार मंत्री रह चुके हैं, सो वे भी वापसी चाहते हैं।
-जगदीश देवड़ा: मंदसौर से मल्लारगढ़ के अनुसूचित जाति के देवड़ा व्यापमं घोटाले में खुद को बेदाग बताते हुए कैबिनेट में स्थान चाहते हैं।
-महेंद्र हार्डिया: पहले मंत्री रहने का हवाला देकर वापसी चाह रहे हैं।
-रमेश मेंदोला: मंत्री बनाए जाने का दबाव है।
– भंवर सिंह शेखावत: सहकारिता को आधार बनाकर दावा कर रहे।
-चंद्रभान सिंह: छिंदवाड़ा से विधायक सिंह कई बार मंत्री रह चुके हैं, फिर कतार में हैं।
-संजय पाठक: कांग्रेस से भाजपा में आए विजयराघवगढ़ विधायक को भी लालबत्ती की आस।
-सीधी से केदार शुक्ला हर बार की तरह वेटिंग में हैं। रंजना बघेल और अर्चना चिटनीस भी हर हाल में कैबिनेट में वापस होना चाहती हैं। रीवा से पूर्व मंत्री रमाकांत तिवारी भी लाइन में हैं। शंकरलाल तिवारी भी दावा ठोके हुए हैं। रूस्तम सिंह आईजी का पद छोड़ कर विधायक बने। अब दोबारा मंत्री बनना चाहते हैं। देश के बड़े बड़े गुर्जर नेता उन्हें मंत्री बनवाने की सिफरिश कर रहे हैं।
पार्टी नेताओं की मानें तो दावेदारों की इतनी लंबी कतार देखकर ही कैबिनेट का विस्तार टाल दिया गया है। पार्टी और सरकार ये नहीं चाहती कि बड़ी तादाद में विधायकों का गुस्सा झेला जाए। पार्टी के मंथन में ये बात आई कि कैबिनेट में नए चेहरे लाना पार्टी के भीतर विरोध वातावरण को आमंत्रण देने जैसा होगा ।