खाने से ज्यादा शिक्षा और मनोरंजन पर खर्च करते हैं भारतीय

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बाज़ारवाद ने देश में दौलत तो पैदा की लेकिन यह दौलत देश के गरीबों की जेब तक अभी भी नहीं पहुंच रही। सरकार के ताज़ा आंकडों के मुताबिक गांवों के गरीब महज़ 17 रुपयों में अपनी रोज़मर्रा की ज़रुरतों को पूरा कर लेते हैं। वहीं शहरों में गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले लोग एक दिन में 23 रुपये खर्च कर पाते हैं। नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइज़ेशन की रिपोर्ट के मु…

खाने से ज्यादा शिक्षा और मनोरंजन पर खर्च करते हैं भारतीय

बाज़ारवाद ने देश में दौलत तो पैदा की लेकिन यह दौलत देश के गरीबों की जेब तक अभी भी नहीं पहुंच रही। सरकार के ताज़ा आंकडों के मुताबिक गांवों के गरीब महज़ 17 रुपयों में अपनी रोज़मर्रा की ज़रुरतों को पूरा कर लेते हैं। वहीं शहरों में गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले लोग एक दिन में 23 रुपये खर्च कर पाते हैं। नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइज़ेशन की रिपोर्ट के मुताबिक आज का भारत खाने से ज्यादा शिक्षा, स्वास्थ्य और मनोरंजन जैसी चीज़ों पर खर्च कर रहा है।

क्या देश की तरक्की भारत और इंडिया के बीच की खाई को पाटने में नाकाम रही है? नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइज़ेशन के ताज़ा आंकड़े इसी बात की ओर इशारा कर रहे हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक गांवों की सबसे ज़्यादा गरीब पांच फीसदी आबादी महीने में औसतन महज़ 521 रुपये कमाती है। वहीं शहरी आबादी में ये आंकड़ा 700 रुपये से कुछ ज़्यादा है।

गांवों में सबसे ऊपरी तबके में आने वाली पांच फीसदी आबादी हर रोज़ 149 रुपये कमाती है। शहरों में अमीरों की रोज़ाना औसतन आमदनी करीब 343 रुपये है। यानी गांवों में गरीबों और अमीरों की आमदनी का फर्क 9 फीसदी है वहीं शहरों में सबसे अमीर और सबसे गरीब तबके की कमाई के बीच करीब 15 गुना का अंतर है। देश के गांवों की औसत आमदनी करीब 48 रुपये प्रतिदिन है वहीं शहरों के लोग औसतन हर महीने 87 रुपये से ज़्यादा कमाते हैं।

शहरों और गांवों में खर्च करने के तरीकों में भी काफी फर्क देखा गया। शहरों में लोग कुल आमदनी का करीब 43 फीसदी खाने पर खर्च करते हैं। वहीं गांवों में कुल कमाई का करीब 53 फीसदी खाने की ज़रुरी चीज़ों पर खर्च करना पड़ता है। शहरों में आमदनी का करीब 7 फीसदी दूध और उससे जुड़े उत्पादों पर खर्च किया जाता है वहीं गांवों में ये आंकड़ा आठ फीसदी है। शहरों में बिजली और ईंधन पर आमदनी का 6.7 फीसदी हिस्सा खर्च किया जाता है जबकि गांवों में यही ज़रुरत पूरी करने के लिए 8 फीसदी खर्च करने पड़ते हैं। हालांकि शिक्षा पर गांवों और शहरों दोनों जगहों पर लोग शिक्षा पर अपनी कमाई का 6.7 फीसदी खर्च करते हैं।

यह आंकड़े साफ गवाही देते हैं कि तरक्की की रोशनी शहरों और गांवों तक बराबर पहुंचाने के लिए अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है।