क्या अगर आप बसों में सफर करते हैं तो आपको बर्गर खाने का हक नहीं? आज़ाद हिंदुस्तान में शायद यह सोच भी किसी के जेहन से नहीं गुज़रती सिवाए इसी आज़ाद भारत से अरबों की कमाई काट रहे मैकडोनाल्ड से। कंपनी महाराष्ट्र के सैकड़ों बस अड्डों में अपनी दुकानें खोलने को तैयार नहीं। दलील यह कि इससे मैकडोनाल्ड की ब्रैंड इमेज पर असर पड़ेगा।
मैकडोनाल्ड के अमेरिकी आका श…
क्या अगर आप बसों में सफर करते हैं तो आपको बर्गर खाने का हक नहीं? आज़ाद हिंदुस्तान में शायद यह सोच भी किसी के जेहन से नहीं गुज़रती सिवाए इसी आज़ाद भारत से अरबों की कमाई काट रहे मैकडोनाल्ड से। कंपनी महाराष्ट्र के सैकड़ों बस अड्डों में अपनी दुकानें खोलने को तैयार नहीं। दलील यह कि इससे मैकडोनाल्ड की ब्रैंड इमेज पर असर पड़ेगा।
मैकडोनाल्ड के अमेरिकी आका शायद अब तक यह समझ ही नहीं पाए कि पक्का इंडियन चलता कहां है या फिर शायद उनके इंडियन को सिर्फ लड़कियां रिझाने के लिए भूख लगती है? वरना मैकडोनाल्ड के पास महाराष्ट्र स्टेट ट्रांसपोर्ट की इस पेशकश को ना मानने की भला क्या वजह होती?
कंपनी की फिक्र मुनाफे की होती तो समझा जा सकता था लेकिन दलील ये है कि आम बसों में सफर करने वाले लोग कंपनी की इमेज पर फिट नहीं बैठते। उनका कहना ये है कि ब्रांड को असर नहीं होना चाहिए। देहात में जाएं वहां कोई आए नहीं तो मैकडोनाल्ड खाली दिखेगा ये उनका कहना है।
हालांकि महाराष्ट्र स्टेट ट्रांसपोर्ट की बातचीत मैकडोनाल्ड के साथ अब भी चल रही है। लेकिन क्या महाराष्ट्र की जनता के नुमाइंदे आम आदमी के इस मज़ाक पर कुछ कहेंगे ये देखना अभी बाकी है।