भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकान्त दास ने कहा है कि कृषि ऋणों को सामान्य रूप से माफ कर करने के चलन से ऋण संस्कृति पर बुरा असर पड़ता है और कर्ज लेने वालों का व्यहार बिगड़ता है। गवर्नर दास का यह बयान ऐसे समय आया है जबकि हाल में कई राज्य सरकारों ने कृषि ऋण को सामान्य तरीके से माफ करने की घोषणा की गई हैं।
हाल में तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की नई सरकार ने किसानों का कर्ज माफ करने की घोषणा की है। कांग्रेस ने इन राज्यों में चुनाव से पहले किसानों से सामान्य कर्ज माफी का वादा किया था। यह पूछे जाने पर कि इस तरह की कृषि कर्ज माफी को वह किस रूप में देखते हैं, दास ने कहा कि कृषि ऋण माफी संबंधित राज्य सरकार के राजकोष में इसके लिए गुंजाइश से जुड़ी होती है। उन्होंने कहा, ‘‘चुनी गई सरकारों को अपने वित्त के संबंध में फैसले लेने का अधिकार है लेकिन प्रत्येक राज्य सरकार को इस तरह का कोई निर्णय करने से पहले अपने ‘राजकोष में इसके लिए गुंजाइश’ पर सावधानी से गौर करना चाहिए।’’
गवर्नर ने कहा, ‘‘राज्य सरकार को यह भी देखना चाहिए क्या उनके खजाने में इसके लिए गुंजाइश है और क्या वे बैंकों को तत्काल कर्ज का पैसा चुका सकती है। सामान्य ऋण माफी से ऋण संस्कृति पर असर डालती है। साथ ही इससे कर्ज लेने वालों के भविष्य के व्यवहार पर भी असर पड़ता है।’’ मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में 1.47 लाख करोड़ रुपए का कृषि ऋण बकाया है। हाल में इन राज्यों ने कृषि ऋण माफ करने की घोषणा की है। 2017 में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र तथा पंजाब ने किसानों के बकाया कर्ज को माफ करने की घोषणा की थी। इससे पहले इसी साल कर्नाटक की गठबंधन सरकार ने भी किसानों का कर्ज माफ किया है।
यह पूछे जाने पर कि क्या 2000 के नोट को धीरे-धीरे हटाया जा रहा है, कहा कि आर्थिक मामलों के विभाग ने पहले ही इस पर स्थिति साफ कर दी है और अब इसमें और जोडऩे के लिए नहीं है। पिछले सप्ताह सरकार ने संकेत दिया था कि 2000 के नोटों की छपाई बंद कर दी गई है, क्योंकि प्रणाली में पर्याप्त मात्रा में ये नोट हैं। आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने कहा था कि इन नोटों की छपाई अनुमानित जरूरत के हिसाब से की जाती है। सचिव ने कहा, ‘‘प्रणाली में 2000 के नोट पर्याप्त मात्रा में हैं और इस समय चलन में कुल नोटों के मूल्य का 35 प्रतिशत 2000 के नोटों का है।’’