किन्नरों में आज भी जीवन्त है महमूद, ‘कुवारा बाप’ है आदर्श फिल्म

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कॉमेडी किंग के नाम से मशहूर महमूद ने अपने फिल्मी सफ़र में हर फिल्म के साथ अदाकारी की अमिट छाप छोड़ी। हास्य और विनोद के इस बादशाह के दिल में संवेदना से भरा ऐसा दिल आखिरी सांस तक धड़कता रहा जिसने फिल्मी पर्दे पर एक नहीं कई इंसानियत भरे प्रयोग किए।

महमूद की ऐसी ही एक याद देश के किन्नरों के दिलों में आज तक ताज़ा है। दरअसल महमूद अपनी फिल्म कुंवारा बाप मे…

किन्नरों में आज भी जीवन्त है महमूद, 'कुवारा बाप' है आदर्श फिल्म

कॉमेडी किंग के नाम से मशहूर महमूद ने अपने फिल्मी सफ़र में हर फिल्म के साथ अदाकारी की अमिट छाप छोड़ी। हास्य और विनोद के इस बादशाह के दिल में संवेदना से भरा ऐसा दिल आखिरी सांस तक धड़कता रहा जिसने फिल्मी पर्दे पर एक नहीं कई इंसानियत भरे प्रयोग किए।

महमूद की ऐसी ही एक याद देश के किन्नरों के दिलों में आज तक ताज़ा है। दरअसल महमूद अपनी फिल्म कुंवारा बाप में किन्नरों पर फिल्माए एक अमर गीत से उनके आदर्श अभिनेता बने थे।

महमूद की पुण्यतिथि आज भी ग्वालियर के किन्नर इस गीत पर नाच-गाकर मनाते आ रहे है। जबकि कॉमेड़ी किंग के प्रशंसकों को इस बात का अफसोस है कि फिल्मी दुनिया अभिनय के इस जादूगरको बिसरा चुकी है।

‘सज रही गली मोरी माँ चुनर गोटे में’… कुंवारा बाप के इस गीत पर ठुमके लगाने वाले किन्नरों के लिए अपने आदर्श अभिनेता महमूद को याद करने की परंपरा का हिस्सा है। कुंवारा बाप में महमूद ने राजेश रोशन को संगीतकार के तौर पर इसी गीत से पहचान दिलाई थी। किन्नरों का कहना है कि महमूद ने इस गीत में जो इज्ज़त उन्हें बख्शी ऐसा फिल्मी दुनिया में किसी ने नहीं किया।

महमूद के प्रशंसक मानते है कि वह बेहद संजीदा इंसान थे और अभिनय के मामले में उनका कोई सानी नहीं हो सकता। महमूद ने कुंवारा बाप में जो कमाल का अभिनय किया वो एक मिसाल है लेकिन उन्हें अफसोस इसी बात का है कि किन्नरों ने महमूद को याद रखा है जबकि फिल्मी दुनिया उन्हें भुला रही है। महमूद ने अपने अभिनय से आम लोगों के दिल में जो जगह बनाई है वह एक मिशाल है कि जिन्दगी को हंसते-हंसते कैसे गुजारा जा सकता है।

महमूद नें “कुँवारा बाप” 1974 में बनाई थी। वह भले ही हमारे बीच नही है पर उनकी बनाई अमरकृति आज भी उस समुदाय के बीच जीवंत है जो समाज में हीन दृष्टि से देखा जाता है लेकिन मरहूम महमूद का संदेश यह लोग आज भी मानते है कि वह हर लावारिस बच्चे के प्रति समप्रित थे। शायद यही वजय है कि महमूद आज हमारे बीच न होते हुये भी इन लोगों की वजह से जीवंत है।