फिल्म अभिनेता रघुवीर यादव अपने नाम के साथ व्यावसायिक फिल्मों का तमगा नहीं जोड़ना चाहते और वह ऐसी फिल्में करना चाहते हैं, जिसकी कहानी अच्छी हो और उनका चरित्र बढि़या हो। जल्द ही उनकी दो फिल्में क्लब 60 और एक बुरा आदमी रिलीज होने वाली है।
रघुवीर यादव ने भाषा को बताया, मैं कमर्शियल और आर्ट फिल्मों के विभाजन के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता। मैं फिल्मों को…
फिल्म अभिनेता रघुवीर यादव अपने नाम के साथ व्यावसायिक फिल्मों का तमगा नहीं जोड़ना चाहते और वह ऐसी फिल्में करना चाहते हैं, जिसकी कहानी अच्छी हो और उनका चरित्र बढि़या हो। जल्द ही उनकी दो फिल्में क्लब 60 और एक बुरा आदमी रिलीज होने वाली है।
रघुवीर यादव ने भाषा को बताया, मैं कमर्शियल और आर्ट फिल्मों के विभाजन के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता। मैं फिल्मों को लेकर बहुत चूजी हूं। मैं ऐसी फिल्में करना चाहता हूं जिनकी कहानी अच्छी हो और मेरे पास कुछ नया करने को हो।
उन्होंने कहा, फिल्में अच्छी होती हैं या बुरी। फिल्म चल जाती है तो वह कमर्शियल हो जाती है। इसलिए इन विभाजनों का मेरे लिए कोई मतलब नहीं है। मैं ऐसी किसी फिल्म का हिस्सा बनना नहीं चाहता, जिसमें मेरे पास करने और कहने को कुछ खास न हो।
वह अपने कैरियर की दो बेहतरीन फिल्मों में निर्देशक प्रदीप कृष्ण की मैसी साहेब और निर्देशिका मीरा नायर की सलाम बांबे का नाम गिनाते हैं। फिल्म मैसी साहेब को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी सराहना मिली थी। इसके अलावा धारावाहिक मुंगेरी लाल के हसीन सपने में मुंगेरी लाल के चरित्र को उन्होंने ऐसा जीवंत किया कि लोगों के दिल में यह चरित्र छा गया।
मध्य प्रदेश के जबलपुर में पैदा हुए रघुवीर यादव ने ख्वाबों में फिल्म में जाने की बात नहीं सोची थी। लेकिन उन्हें गाना गाने के शौक जरूर था, जिसे देखकर पारसी थियेटर वालों ने उनसे संपर्क किया और वह पारसी थियेटर करने लगे।
अभिनेता अनु कपूर और लब्ध प्रतिष्ठित नाट्य निर्देशक रंजीत कपूर के पिता मदनलाल कपूर की एक पारसी थियेटर कंपनी द्वारा संपर्क किये जाने के बाद रघुवीर यादव ने वहां से अपनी रंगयात्रा शुरू की और इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पारसी थियेटर के बारे में रघुवीर यादव ने कहा, थियेटर में मेरी काफी पूछ थी, क्योंकि मैं बेहतर गा लेता था। आज के हिन्दी सिनेमा को आगे बढ़ाने में इसका काफी योगदान रहा है और फिल्मों के शुरआती दौर के अभिनेता ज्यादातर पारसी थियेटर के ही थे। उन्होंने कहा कि पारसी थियेटर की एक अदा को आज भी फिल्मों ने अपनाया हुआ है कि चाहे दु:ख हो, खुशी हो, विरह हो नायक अपने मनोभाव की अभिव्यक्ति गाने के जरिये करता है। फर्क सिर्फ यह था कि थियेटर में जहां कृत्रिम सेट लगाना पड़ता था वहीं फिल्मों में वास्तविक लोकेशन पर फिल्मांकन की सुविधा थी।
हालांकि वह मानते हैं कि अब जिस तरह का सिनेमा बन रहा है उसमें पारसी थियेटर के तत्व लुप्त हो रहे हैं और उसकी जगह रिएलिज्म ले रहा है लेकिन अभी भी हिन्दी सिनेमा को पारसी थियेटर के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त होने में काफी समय लगेगा।
फिल्म क्लब 60 के निर्देशक संजय त्रिपाठी हैं जिसमें उनके साथी कलाकारों में फारख शेख, टीनू आनंद, सतीश शाह, सारिका इत्यादि हैं। इस फिल्म में उनका चरित्र मनु भाई का है जो अपने जिंदगी के गम भूलकर बुजुर्गो के इस क्लब में अपना ज्यादा समय बिताता है। यह फिल्म जुलाई के लगभग रिलीज किये जाने की संभावना है। निर्देशक इशरार की फिल्म एक बुरा आदमी में उसके सह कलाकारों में अरणोदय सिंह, किट्टू गिडवानी इत्यादि हैं। इस फिल्म के रिलीज के बारे में अभी कोई निश्चित जानकारी नहीं है।
फिल्मों तक की अपनी यात्रा के बारे में उन्होंने कहा कि पारसी थियेटर के बाद वह लखनउ चले गये और आर्केस्ट्रा में गाना गाने लगे। वहां राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय :एनएसडी: के बारे में जानकारी मिली तो यहां चले आये।