लालकृष्ण आडवाणी ने भाजपा के संसदीय बोर्ड, चुनाव समिति और राष्ट्रीय कार्यकरणी से इस्तीफा दे दिया है। आडवाणी ने इस्तीफे का पत्र भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह को सौंपा। लेकिन सूत्रों से जानकारी मिल रही है कि बीजेपी आडवाणी का इस्तीफा स्वीकार नहीं करेगी। पार्टी के नेताओं द्वारा आडवाणी को मनाने की कोशिश इस समय की जा रही है।
प्रिय राजनाथ सिंह जी,
मैंने अपनी प…
लालकृष्ण आडवाणी ने भाजपा के संसदीय बोर्ड, चुनाव समिति और राष्ट्रीय कार्यकरणी से इस्तीफा दे दिया है। आडवाणी ने इस्तीफे का पत्र भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह को सौंपा। लेकिन सूत्रों से जानकारी मिल रही है कि बीजेपी आडवाणी का इस्तीफा स्वीकार नहीं करेगी। पार्टी के नेताओं द्वारा आडवाणी को मनाने की कोशिश इस समय की जा रही है।
प्रिय राजनाथ सिंह जी,
मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी जनसंघ में काम करने में गर्व समझा है। वो पार्टी जिसका एकमात्र मकसद देश और लोगों का भला सोचना था। लेकिन लगता है कि अब बीजेपी वो पार्टी नहीं रही जो देश हित के लिए काम करती थी। मुझे नहीं लगता ये वही आदर्शवादी पार्टी है जो श्यामा प्रसाद मुखर्जी और वाजपेयी के आदर्श पर खड़ी है। कुछ दिनों से मुझे पार्टी की दिशा और दशा से तालमेल बिठाने में दिक्कत हो रही थी। पार्टी के कई नेता निजी स्वार्थों को साधने में लगे हैं, इसलिए मैंने इस्तीफ देना का फैसला किया है। इस चिट्ठी को मेरा इस्तीफा माना जाए। मैं पार्टी कार्यकारिणी, संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति से इस्तीफा दे रहा हूं।
…लालकृष्ण आडवाणी
हालांकि अभी यह जानकारी नहीं मिली है कि राजनाथ सिंह ने आडवाणी के इस्तीफे को मंजूर कर लिया है। आडवाणी जी भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक हैं, उनका पद पार्टी में काफी बड़ा है। लेकिन पिछले कुछ समय से भाजपा में दो गुट बन गए थे। एक गुट आडवाणी का था और दूसरा मोदी का। बताया जा रहा है कि आडवाणी यह नहीं चाहते थे कि मोदी को बीजेपी की चुनाव प्रचार समिति का प्रमुख बनाया जाए। इसके विरोध में उन्होंने गोवा में हुई बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में हिस्सा नहीं लिया था। हालांकि कहा यह जा रहा था कि वह बीमार है, इसलिए गोवा नहीं आए हैं।
लेकिन आडवाणी के लाख विरोध के बावजूद मोदी को भाजपा की चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष चुन लिया गया। इससे आडवाणी को बहुत आघात पहुंचा और उसी के परिणामस्वरूप उन्होंने आज पार्टी को छोड़ने का फैसला ले लिया।
इससे पहले रविवार को आडवाणी ने अपने ब्लॉग में लिखा, ”पृथ्वीराज रोड स्थित हमारे घर में श्रीकृष्ण की चंदन की एक बेमिसाल मूर्ति है। इसमें श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र में अर्जुन को अपने विश्वरूप का दर्शन देते हुए गीता का ज्ञान दे रहे हैं। चिकमंगलूर (कर्नाटक) के कलाकार द्वारा बनाई गई इस मूर्ति की नक्काशी की खास बात यह है कि इस मूर्ति के पिछले हिस्से में महाभारत के कई प्रसंगों जैसे द्रौपदी चीरहरण, बाणों की शैया पर लेटे भीष्म पितामह, पांडवों को उपदेश का जिक्र है। इसके अलावा दशावतारों का भी जिक्र है।”
आडवाणी के इस्तीफा देने से पार्टी में हड़कंप मंच गया है, सभी के लिए यह चौंकाने वाला समय है। कीर्ति आजाद का कहना है कि वह आडवाणी के इस फैसले से हैरान हैं।
लालकृष्ण आडवाणी का सफरनामाबीजेपी के लोहपुरुष कहे जाने वाले आडवाणी ने संघ प्रचारक की भूमिका छोड़कर 1957 में जनसंघ का काम संभाला था। जब वह राजस्थान से दिल्ली शिफ्ट हुए, तो अटल बिहारी वाजपेयी के साथ रहते थे। दीनदयाल उपाध्याय की हत्या के बाद अटल जनसंघ के केंद्र में आ गए और आडवाणी उनके नंबर टू की हैसियत में। 1980 में भारतीय जनता पार्टी बनने के बाद भी सत्ता का यही क्रम बना रहा। 1989 में आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या रथयात्रा के बाद भी बीजेपी बुलंदियों पर पहुंची। 1984 के चुनाव में बीजेपी के पास लोकसभा में दो सीटें थीं, लेकिन 1989 में ये बढ़कर 88 हो गईं. उसके बाद 1991 में बीजेपी ने यूपी, एमपी, राजस्थान औऱ हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाई। 1995 में बतौर अध्यक्ष आडवाणी ने ही बीजेपी के पीएम पद के लिए घोषणा की थी। वाजपेयी के सत्ता में रहने के दौरान ही 2002 में आडवाणी उपप्रधानमंत्री बने थे. आडवाणी केंद्रीय गृहमंत्री के पद भी रहे थे।