उत्तराखंड में करीब एक हफ्ते पहले आई त्रासदी के बाद अपने रिश्तेदारों एवं दोस्तों के बारे में सूचना हासिल करने के लिए लोग उनके फोटो लिए हुए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल की दौड़ लगा रहे हैं और समय बीतने के साथ उनका धैर्य अब जवाब देने लगा है।
पहाड़ी राज्य में फंसे या लापता लोगों के परिजन और दोस्त यहां आए हुए हैं और अपने प्रियजन के बारे में जानकारी हासिल…
उत्तराखंड में करीब एक हफ्ते पहले आई त्रासदी के बाद अपने रिश्तेदारों एवं दोस्तों के बारे में सूचना हासिल करने के लिए लोग उनके फोटो लिए हुए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल की दौड़ लगा रहे हैं और समय बीतने के साथ उनका धैर्य अब जवाब देने लगा है।
पहाड़ी राज्य में फंसे या लापता लोगों के परिजन और दोस्त यहां आए हुए हैं और अपने प्रियजन के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए उन्हें अस्पतालों एवं शिविरों में ढूंढ रहे हैं। वे प्रशासन की तरफ से दिखाई जा रही रही पूर्ण असंवेदनशीलता की भी निंदा कर रहे हैं।
केदारनाथ तीर्थयात्रा पर आए एक व्यक्ति ने कहा, अपने माता…पिता की खोज में मैं दिल्ली से आया हूं। पिछली बार 15 जून को उनसे मेरी बात हुई थी और उसके बाद से उनके बारे में मुझे कोई खबर नहीं है। एक अन्य व्यक्ति ने सरकारी अधिकारियों की असंवेदनशीलता का आरोप लगाया और कहा कि विदेशियों को तरजीह दी जा रही है जबकि भारतीयों को मरने के लिए छोड़ दिया जा रहा है।
उन्होंने कहा, मेरे बच्चे वहां पिछले आठ दिनों से फंसे हुए हैं। हमें फोन करने के लिए वे दूसरे के मोबाइल फोन का सहारा ले रहे हैं लेकिन असहाय हैं । अधिकारी कुछ नहीं कर रहे हैं। राहत एवं बचाव कार्य में विदेशियों को तरजीह दी जा रही है जबकि भारतीयों को मरने एवं भूखा रहने के लिए छोड़ दिया जा रहा है।
उन्होंने कहा, उत्तराखंड का कोई अधिकारी या जन प्रतिनिधि वहां नहीं पहुंचा है। हमें कोई भी विश्वसनीय सूचना किसी ने कहीं से भी नहीं दी है। एक अन्य युवक ने कहा कि गौरीकुंड में फंसे उसके रिश्तेदारों ने उसे बताया कि उनके साथ वहां करीब 2500 लोग फंसे हुए हैं।
उन्होंने कहा, मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि अभूतपूर्व विनाश के बावजूद अभी तक इसे राष्ट्रीय आपदा क्यों घोषित नहीं किया गया है। मेरे रिश्तेदारों के साथ 2500 लोग गौरीकुंड में फंसे हुए हैं और वर्तमान समय में उनको बचाना असंभव दिख रहा है क्योंकि एक बार में एक हेलीकॉप्टर से केवल दस से 15 लोगों को लाया जा रहा है। सरकार को और हेलीकॉप्टर तुरंत लगाना चाहिए।
बद्रीनाथ में फंसे शरण को कल चमोली राहत शिविर लाया गया। उन्होंने कहा, स्थिति दयनीय है। अगर सेना वहां नहीं होती तो हमारे लौटने की कोई संभावना नहीं थी। मैं वहां 15 को पहुंचा और तभी बारिश शुरू हो गई।
उन्होंने कहा, 18 को सेना के आने तक हमें कोई सूचना नहीं थी। हमें बताया गया कि दो दिन में सड़क साफ होगी लेकिन सेना आई और उन्होंने हमें बताया कि कम से कम 30 दिनों तक सड़क साफ नहीं हो सकती। यह जानकर मुझे सदमा लगा।