आज से ठीक एक महीना पहले उत्तराखंड में कुदरत का कहर टूटा था। हजारों जानें गईं, लाखों बरबाद हो गए और सैकड़ों लोग अभी भी लापता हैं। इन सबके बीच उत्तराखंड सरकार ने सभी लापता लोगों को मृत मानते हुए अब मुआवजे की कार्रवाई शुरू कर दी है।
पहाड़ पर आई प्रलय के आज पूरे 30 दिन हो गए यानी एक महीना लेकिन अभी तक न तो उस तबाही के जख्म भरे हैं और न ही पहुंच पाई उन स…
आज से ठीक एक महीना पहले उत्तराखंड में कुदरत का कहर टूटा था। हजारों जानें गईं, लाखों बरबाद हो गए और सैकड़ों लोग अभी भी लापता हैं। इन सबके बीच उत्तराखंड सरकार ने सभी लापता लोगों को मृत मानते हुए अब मुआवजे की कार्रवाई शुरू कर दी है।
पहाड़ पर आई प्रलय के आज पूरे 30 दिन हो गए यानी एक महीना लेकिन अभी तक न तो उस तबाही के जख्म भरे हैं और न ही पहुंच पाई उन सैकड़ों हजारों जरुरतमंदों तक मुकम्मिल राहत। जो काल के गाल में समा गए उनकी कौन पूछे, जब सैकड़ों लापता लोगों का ही अभी तक कोई सुराग नहीं मिल पाया है।
ऐलान था कि आपदा के एक महीने के भीतर या तो सभी लापता लोगों को ढूंढ लिया जाएगा या फिर जिन्हें नहीं खोजा जा सका उन्हें भी मृत मान लिया जाएगा।
आखिरकार वह घड़ी आ गई और वादे के मुताबिक सरकार भी अब उन तमाम लोगों के लिए मुआवजे की औपचारिकता पूरी करने में जुट गई है जिनकी अब तक कोई खोज खबर नहीं है।
मुनासिब भी है आखिर सरकार भला कब तक लापता लोगों के इंतजार में बैठी रहे। मुआवजे का मरहम भी तो लगाना है लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि इस औपचारिकता के बाद गुमशुदा लोगों की तलाश ही खत्म समझ ली जाए।
सरकारी आंकड़े को ही पुख्ता मानें तो भी उत्तराखंड में आई तबाही के बाद से अभी तक कम अज कम 5748 लोगों का कोई अता-पता नहीं है। इनमें सबसे ज्यादा 2 हजार 98 लोग यूपी के हैं जबकि मध्यप्रदेश के 1 हजार 35 और राजस्थान के 620 लोगों का भी अभी तक कोई सुराग नहीं मिल पाया है। लापता लोगों की फेहरिस्त में महाराष्ट्र से 260, दिल्ली से 213, गुजरात से 126, हरियाणा से 113 और आंध्रप्रदेश से 83 लोगों के नाम भी शामिल हैं। इनके अलावा देश के करीब दर्जन भर सूबों से भी ऐसे लोगों की तादाद सैकड़ों में है जो आज तक घर नहीं पहुंचे।
सवाल यह है कि उत्तराखंड सरकार इन तमाम लापता लोगों का हिसाब किताब करेगी कैसे? हालांकि सरकार का दावा है कि मुआवजे के ऐलान के बावजूद गुमशुदा लोगों की तलाश और राहत-पुनर्वास का काम जारी रखा जाएगा लेकिन इस सरकारी दावे पर लोगों को भरोसा नहीं है।
सरकारी दावे और जमीनी हकीकत का फासला साफ है। जो लोग सामने हैं उन्हें राहत नहीं मिल पा रही और जो लापता हैं उनका कोई अता-पता नहीं मिल रहा। ऐसे में महज मुआवजे या मदद के ऐलान से क्या फर्क पड़ जाएगा।