उत्तराखंड: 1 सप्ताह बाद भी सांसें भंवर में अटकी

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उत्तराखंड में आए सैलाब को एक हफ्ता हो चुका है और अब भी कई जानें पहाड़ों में मदद का इंतजार कर रही हैं। अगले 24 घंटे बहुत अहम हैं क्योंकि मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि सोमवार को यहां फिर बारिश हो सकती है। सेना के जवान जी जान से लोगों को बचाने की कोशिश में जुटे हुए हैं।

सरकार के मुताबिक अब तक 70 हज़ार लोगों को बचाया जा चुका है लेकिन अब भी कई लोग जगह-ज…

उत्तराखंड: 1 सप्ताह बाद भी सांसें भंवर में अटकी

उत्तराखंड में आए सैलाब को एक हफ्ता हो चुका है और अब भी कई जानें पहाड़ों में मदद का इंतजार कर रही हैं। अगले 24 घंटे बहुत अहम हैं क्योंकि मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि सोमवार को यहां फिर बारिश हो सकती है। सेना के जवान जी जान से लोगों को बचाने की कोशिश में जुटे हुए हैं।

सरकार के मुताबिक अब तक 70 हज़ार लोगों को बचाया जा चुका है लेकिन अब भी कई लोग जगह-जगह फंसे हुए हैं। केदारनाथ और जंगल चट्टी इलाकों को संवेदनशील बताया जा रहा है। जंगल चट्टी में भी लोग फंसे हुए हैं।

हम आपको बता दें कि 22,000 लोग अब भी फंसे हुए हैं जिन्हें बचाना सेना के लिए बड़ी चुनौती है वहीं बताया जा रहा है कि इस त्रासदी में मरने वालों की संख्या 1000 तक पहुंच सकती है।

सेना के बहादुर जवान अपनी तरफ से हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं जल्द से जल्द फंसे हुए लोगों को बचाने की।

उत्तराखंड में आपदा का एक हफ्ता बीत गया है मगर अभी भी जहां-तहां 40 हजार लोग फंसे हुए हैं। मुश्किल यह है कि उत्तराखंड में सोमवार को बारिश की संभावना है और यही संभावना, सेना के लिए चिंता का विषय है।

उत्तराखंड में राहत के लिए वक्त कम है मगर चुनौती है एवरेस्ट जैसी। वजह यह है कि पहाड़ों पर सोमवार से तेज बारिश की आशंका है।

चिंता की बात ये है कि करीब 40 हजार लोग जहां-तहां फंसे हुए हैं। अब डर यही है कि बारिश राहत में खलल न डाल दे। यानी कि अगले 24 घंटों में उत्तराखंड में फंसे सभी लोगों को किसी भी हाल में निकालना ही होगा।

हालात को देखते हुए सेना ने अपना राहत अभियान और तेज कर दिया है। अब तक 18 हजार से ज्यादा लोगों को बचाया जा चुका है। इसके लिए 40 हेलीकॉप्टर तैनात किए गए हैं। चिकित्सा सुविधा के लिये 19 मेडिकल केन्द्र बनाए गए हैं। पूरे काम को अंजाम देने लिए सेना ने साढ़े आठ हजार जवान तैनात किए हैं। इसके अलावा गंगोत्री में एक नया हेलीपैड बनाया गया है।

बहरहाल, 400 किलोमीटर में फैले इस क्षेत्र को वापस पटरी पर लाने के लिए युद्ध स्तर पर काम चल रहा है। मिशन बेहद मुश्किल है मगर नामुमकिन कतई नहीं।