दक्षिण भारत में अपनी एकमात्र सरकार के जाने के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि कर्नाटक चुनाव का नतीजा उनके लिए आश्चर्यजनक नहीं है और यह उनकी पार्टी और कांग्रेस दोनों के लिए सबक है कि वे आम आदमी को हल्के में नहीं लें।
कर्नाटक मामले से पार्टी के निपटने पर आलोचनात्मक रवैया अपनाते हुए उन्होंने कहा कि यह बिल्कुल अवसरवादी रवैया था। उन्हो…
दक्षिण भारत में अपनी एकमात्र सरकार के जाने के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि कर्नाटक चुनाव का नतीजा उनके लिए आश्चर्यजनक नहीं है और यह उनकी पार्टी और कांग्रेस दोनों के लिए सबक है कि वे आम आदमी को हल्के में नहीं लें।
कर्नाटक मामले से पार्टी के निपटने पर आलोचनात्मक रवैया अपनाते हुए उन्होंने कहा कि यह बिल्कुल अवसरवादी रवैया था। उन्होंने कहा कि वहां संकट के प्रति भाजपा की प्रतिक्रिया कोई मामूली अविवेकपूर्ण नहीं थी।
वहीं, केंद्रीय मंत्री पवन कुमार बंसल और अश्विनी कुमार को हटाने को लेकर प्रधानमंत्री के दो लोगों को सोनिया गांधी के बर्खास्त करने संबन्धी खबरों का हवाला देते हुए आडवाणी ने सवाल किया कि क्या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने मंत्रिमंडल के बारे में फैसला करने का अधिकार भी खो दिया है।
उन्होंने आगे कहा, आत्मसम्मान की मांग है कि प्रधानमंत्री पद छोड़ दें और जल्द आम चुनाव का आदेश दें। कांग्रेस ने हालांकि उन खबरों का खंडन किया है कि दोनों मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई सोनिया के जोर देने पर की गई है। उसने कहा है कि यह प्रधानमंत्री और सोनिया का संयुक्त फैसला था।
आडवाणी ने आश्चर्य जताया कि अगर भ्रष्टाचार ने बेंगलूर में रोष पैदा किया तो नयी दिल्ली में यह उसी तरह का एहसास क्यों पैदा नहीं करेगा। आडवाणी ने अपने ब्लॉग पर कहा, मुझे दुख है कि हम कर्नाटक में हार गए हैं। लेकिन मैं आश्चर्यचकित नहीं हूं। आश्चर्य तब होता जब हम जीत जाते।
बकौल आडवाणी, मेरा मानना है कि कर्नाटक के नतीजे भाजपा के लिए गंभीर सबक हैं। एक रूप में यह कांग्रेस के लिए भी सबक है। साझा सबक हम दोनों के लिए है कि आम आदमी को हल्के में न लिया जाए।
आडवाणी ने महसूस किया कि कर्नाटक के नतीजों ने कोयला घोटाला और रेलवे घूसकांड मामले में मंत्रियों की बर्खास्तगी जैसी ठोस कार्रवाई करने में योगदान दिया क्योंकि कांग्रेस बजट सत्र के उत्तराद्र्ध के पूरी तरह बाधित हो जाने के बावजूद दोनों घोटालों के संबंध में कुछ भी नहीं करने को प्रतिबद्ध लग रही थी।
आडवाणी ने बी एस येदियुरप्पा के काल में पार्टी के भ्रष्टाचार से निपटने पर कहा कि अगर भाजपा ने तत्काल ठोस कार्रवाई की होती तो स्थिति कुछ अलग होती। आडवाणी ने कहा, लेकिन कई महीने तक उनके अपराध को छोटा मानकर उसे माफ करके उन्हें किसी तरह शांत करने का व्यग्रता से प्रयास चलता रहा।
उन्होंने कहा कि यह दलील दी गयी कि अगर पार्टी ने व्यावहारिक नजरिया नहीं अपनाया तो वह दक्षिण में अपनी एकमात्र सरकार खो देगी।