जम्मू-कश्मीर में आए सैलाब ने उन लोगों की मानसिकता बदल दी है, जो कभी फौज पर पत्थर बरसाते थे। इस संकट की घड़ी में आज वह सेना को मसीहा मान रहे हैं। विपरीत परिस्थितियों में सेना द्वारा श्रीनगर में चलाए जा रहे राहत कार्यो ने कश्मीरियों के दिलों में जमी मैल को धो दिया है। कभी ‘इंडियन फोर्सेज गो बैक’ के नारे लगाने वाले कश्मीरी आज नेताओं की नहीं सेना की सरकार चाहते हैं।
कारण यह है कि बाढ़ में फंसे लोगों को स्थानीय प्रशासन व नेतागण उनकी मदद के लिए नहीं पहुंचे। सेना ही थी जिसने जमीन से लेकर आसमान तक उनकी हर संभव सहायता की। सेना अभी तक सवा लाख के करीब लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल चुकी है। अलगाववादी नेता जो फौज के खिलाफ आग उगलते थे वे भी खामोश हैं। लोगों का स्पष्ट कहना है कि आज घाटी में सेना नहीं होती तो उन्हें इस आपदा से कोई राजनेता या धार्मिक नेता नहीं बचा सकता था।
श्रीनगर के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से सेना की मदद से निकाले गए कश्मीर निवासियों को गुरुवार सुबह एयरफोर्स के विमान से टेक्निकल एयरपोर्ट जम्मू लाया गया। विमान से उतरने ही लोगों ने सेना के पक्ष में नारेबाजी शुरू कर दी। आंखों में आंसू और राजनीतिक दलों के प्रति गुस्सा उनके चेहरे पर साफ झलक रहा था। नारेबाजी करते हुए ये कश्मीरी युवा बार-बार यही कह रहे थे कि उन्हें नेताओं की नहीं बल्कि फौज की सरकार चाहिए। जब वे अपने घरों की छतों पर भूखे-प्यासे मदद की गुहार लगा रहे थे, तब उन्हें नेताओं ने नहीं सेना ने बचाया। बिलाल अहमद व उसके साथ आए दस कश्मीरी युवाओं ने सेना के जवानों को देवदूत बताया।