खाद्य सुरक्षा बिल के जरिए वोट बटोरने में जुटी कांग्रेस

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खाद्य सुरक्षा बिल के जरिए कांग्रेस ने मिशन 2014 के लिए बड़ा दांव खेल दिया है। विरोधियों की मजबूरी भी कुछ ऐसी है कि खुलकर कोई बिल के खिलाफ सुर बुलंद नहीं कर पा रहा। कांग्रेस की रणनीति जहां बिल के जरिए वोटों की फसल काटने की है वहीं विपक्ष भी लामबंद होकर सरकार को घेरने की कोशिश में जुट गया है।

अगले आमचुनाव को देखते हुए खाद्य सुरक्षा बिल के रूप में यूपी…

खाद्य सुरक्षा बिल के जरिए वोट बटोरने में जुटी कांग्रेस

खाद्य सुरक्षा बिल के जरिए कांग्रेस ने मिशन 2014 के लिए बड़ा दांव खेल दिया है। विरोधियों की मजबूरी भी कुछ ऐसी है कि खुलकर कोई बिल के खिलाफ सुर बुलंद नहीं कर पा रहा। कांग्रेस की रणनीति जहां बिल के जरिए वोटों की फसल काटने की है वहीं विपक्ष भी लामबंद होकर सरकार को घेरने की कोशिश में जुट गया है।

अगले आमचुनाव को देखते हुए खाद्य सुरक्षा बिल के रूप में यूपीए सरकार ने अपना ट्रंप कार्ड चल दिया है। सरकार को उम्मीद है कि करीब 80 फीसदी को भोजन की गारंटी देने वाली योजना उसकी चुनावी नैया पार करा देगी लेकिन मॉनसून सत्र में इसे संसद से पास कराने की भी चुनौती है। बीजेपी और लेफ्ट के साथ साथ सरकार की साथी समाजवादी पार्टी भी बिल के मौजूदा प्रारूप के विरोध में खड़ी है वही कांग्रेस की रणनीति बिल के विरोधियों को गरीब विरोधी के रूप में पेश करने की है। बहरहाल कांग्रेस जानती है कि संसद में बिल को पास कराना इतना आसान नहीं है। ऐसे में कांग्रेस ने नए सहयोगियों की तलाश तेज कर दी है। पार्टी झारखंड में जेएमएम के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रही है तो वहीं करुणानिधि की बेटी को राज्यसभा भेजने में साथ देकर टूटे रिश्तों की डोर को फिर से जोड़ लिया है। इसके साथ ही कांग्रेस की बड़ी उम्मीद जनता दल यू से भी है जो फिलहाल खुलकर कुछ नहीं बोल रही है।

जाहिर है कि कांग्रेस इस बिल का पूरा राजनीतिक फायदा उठाने के मूड में है तो वहीं विपक्ष के तेवर साफ बता रहे हैं कि संसद में इस बिल को पास करवाना कतई आसान नहीं होगा लेकिन इसका असर सरकार पर पड़ता नजर नहीं आ रहा क्योंकि गरीबों की नजर भले ही भोजन की गारंटी पर हो लेकिन राजनीतिक दलों की नजर तो उनसे मिलने वाली वोटों की फसल पर ही है।