टूट कर बिखर जाएगी एनडीए, जेडीयू छोड़ देगी साथ!

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अपने राज्य में भले ही उनकी किरकिरी हुई लेकिन दिल्ली के सियासी घमासान में नीतीश बीजेपी के लिए किरकिरी का सबब बने हुए हैं। बैठकों के कई दौर के बाद जेडीयू ने बीजेपी को शनिवार तक मोदी पर रुख़ साफ करने के लिए कहा है। दोनों पार्टियों के बीच कशीदगी का आलम ये है कि बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने भी सरकारी फाइलों पर दस्तखत करना बंद कर दिया है।

2014 की जं…

टूट कर बिखर जाएगी एनडीए, जेडीयू छोड़ देगी साथ!

अपने राज्य में भले ही उनकी किरकिरी हुई लेकिन दिल्ली के सियासी घमासान में नीतीश बीजेपी के लिए किरकिरी का सबब बने हुए हैं। बैठकों के कई दौर के बाद जेडीयू ने बीजेपी को शनिवार तक मोदी पर रुख़ साफ करने के लिए कहा है। दोनों पार्टियों के बीच कशीदगी का आलम ये है कि बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने भी सरकारी फाइलों पर दस्तखत करना बंद कर दिया है।

2014 की जंग जीतने के लिए एनडीए एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है लेकिन एनडीए में दरार ऐसी कि कांग्रेस समेत दूसरी पार्टियों को कुछ भी कहने करने की जरूरत नहीं। नरेंद्र मोदी को कमान सौंपने के बाद जेडीयू के तेवर फिर भी उतने तल्ख नहीं हुए थे लेकिन आडवाणी के मोदी विरोध ने उन्हें महाराजगंज का गम मिटाने और हमले का नया मौका दे दिया।

नीतीश गठबंधन पर गरम हो रहे हैं लेकिन बीजेपी के अध्यक्ष मुलायम हुए जा रहे हैं। राजनाथ सिंह गठबंधन बचाने की कोशिश में दुबले हुए जा रहे हैं।

सवाल है कि ये दोस्ती का कौन-सा फॉर्मेट है जिसमें भरोसे की जगह हर कहीं अविश्वास ही है। हालांकि नीतीश के उलट हमेशा की तरह शरद यादव के तेवर थोड़े नरम जरूर हैं।

लेकिन सवाल है कि क्या एक नाम को लेकर दोनों पार्टियों के लिए 17 साल की दोस्ती को खत्म करना जायज है।

सवाल ये भी है कि अहं की ऐसी लड़ाई के बाद आखिर जनता कैसे एनडीए पर भरोसा जताएगी।

बिहार में जनता ने बीजेपी- जेडीयू गठबंधन को जनादेश दिया लेकिन दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे है। दोनों ही पार्टियों को पता है कि गठबंधन टूटने का खामियाजा दोनों को उठाना पड़ेगा।

लोकतंत्र में अंतिम फैसला जनता के हाथों में होता है। लेकिन फिलहाल बीजेपी जेडीयू के बीच की तल्खी बताती है कि इन्हें इस बात में कुछ खास भरोसा नहीं है।