तैयार है देश के विकास का मोदी मॉडल

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नरेंद्र मोदी अब अपनी सभाओं में सिर्फ गुजरात के विकास मॉडल का यशोगान नहीं करेंगे। बल्कि अब वह देश के विकास के अपने मॉडल को जनता के सामने रखेंगे।

विकास के इस मोदी मॉडल में भाजपा या एनडीए शासित अन्य राज्यों की तरह मुफ्त बिजली, सरकारी खैरात पर अनाज, मुफ्त लैपटॉप, टीवी जैसे लोकलुभावन नारे नहीं बल्कि आम आदमी का आर्थिक सशक्तीकरण करके उसे आत्म निर्भर बनाने की गुजरात जैसी ठोस कार्ययोजना होगी।

आर्थिक विकास का पैमाना
मोदी मॉडल इस मान्यता पर आधारित है कि लोग सरकारी रियायत पर पलने की बजाय सम्मान से आजीविका कमा कर अपने बलबूते जिंदगी जीना चाहते हैं। इसीलिए पिछले दस साल के मोदी शासन के दौरान गुजरात में सस्ते अनाज या मुफ्त बिजली देने की सरकारी रियायत नहीं बांटी गई।

मोदी मॉडल सिर्फ जीडीपी विकास दर को ही आर्थिक विकास का पैमाना नहीं मानेगा,बल्कि बढ़ी विकास दर का लाभ सबको मिले, ऐसा समावेशी विकास ही प्रगति का मानदंड होगा।

गांधीवादी आर्थिक विकास
विरोधियों के उन सवालों और आलोचनाओं जिनमें कहा जाता है कि मोदी सिर्फ यूपीए सरकार की आर्थिक असफलताओं को ही गिनाते हैं, उनके पास कोई वैकल्पिक आर्थिक नीति और योजना नहीं है, का जवाब देने के लिए नरेंद्र मोदी आर्थिक विकास का अपना मॉडल तैयार कर चुके हैं। जिसे वह वक्त आने पर जनता के सामने रखेंगे।

भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित होने के बाद पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमर उजाला के साथ बेहद अनौपचारिक मुलाकात में यह संकेत दिए।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और गांधीवादी आर्थिक विकास की स्वदेशी अवधारणा और विदेशी पूंजी निवेश पर मोदी मॉडल में कोई विरोधाभास नहीं है।

बुंदेलखंड पिछड़ा और प्यासा
मोदी के सामने चीन का उदाहरण है जहां स्वदेशी उद्योगों का विकास और विदेशी निवेश दोनों ही आर्थिक विकास में योगदान कर रहे हैं। विकास की गाड़ी कैसे पटरी पर दौड़ती है, इसके लिए बुंदेलखंड और कच्छ-बनासकांठा के विकास की तुलना मोदी के लिए एक नजीर है।

जहां पांच नदियों के बावजूद बुंदेलखंड पिछड़ा और प्यासा है, वहीं कच्छ और बनासकांठा की बंजर जमीन आज हरी भरी है और वहां सात लाख हेक्टेयर सिंचित क्षेत्र है जिसमें अनार से लेकर आम तक की फसलें उगाई जा रही हैं और उनका निर्यात अफगानिस्तान तक हो रहा है।

मोदी मॉडल में युवा
बेरोजगारी की चुनौती से निबटने के लिए मोदी मॉडल में युवाओं के कौशल्य वर्धन का रामबाण है। केंद्र सरकार की इस योजना को गुजरात में जिस कारगर तरीके से लागू किया गया है, उससे युवाओं को विभिन्न काम धंधों की तकनीक और कुुशलता का प्रशिक्षण देकर उन्हें कुशल कारीगर बनाया जा रहा है।

मोदी मॉडल भले ही सबको नौकरी न दे सके लेकिन सबको काम और रोजगार देने का रास्ता दिखाने का दावा करता है।

मोदी मॉडल में देश में कुछ ऐसे निर्माण करने पर भी जोर होगा जो दुनिया के लिए एक शो केस साबित हो। मसलन अहमदाबाद मुंबई के बीच चीन की तर्ज पर बुलेट ट्रेन चलाकर दुनिया को दिखाया जाना चाहिए की भारत अब बीस साल पहले का भारत नहीं है।

स्टेचू ऑफ यूनिटी
गुजरात में सरदार पटेल की विश्व में सबसे ऊंची प्रतिमा लगाने के पीछे भी यही सोच है। क्योंकि मुगलकालीन इमारत ताजमहल के बाद भारत में एक भी ऐसा निर्माण नहीं हुआ जिसका लोहा पूरी दुनिया माने। राष्ट्रपति भवन और संसद परिसर अंग्रेजों ने बनाए जरूर लेकिन उन्हें आप दुनिया में शोकेस करके नहीं दिखा सकते हैं।

इसलिए सरदार पटेल की एकता मूर्ति (स्टेचू ऑफ यूनिटी) इस दिशा में पहला बड़ा कदम होगी, जो देश में एकता की भावना जगाएगी और दुनिया में भारत की उभरती ताकत का प्रतीक बनेगी।

देश में ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए मोदी मॉडल में गुजरात की तर्ज पर ऊर्जा सुधार लागू करने पर बल दिया जाएगा। जहां किसानों को मुफ्त बिजली देने की बजाय 24 घंटे निर्बाध बिजली देने और खेतों के लिए पानी के इंतजाम पर बल दिया गया।

पानी की जरूरत
हालाकि इन बिजली सुधारों को लागू करते वक्त मोदी सरकार को किसानों के जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा, जिनमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा भारतीय किसान संघ भी शामिल था। लेकिन जब किसानों को समझाया गया कि उन्हें बिजली से ज्यादा खेतों के लिए पानी की जरूरत है और सरकार पानी का इंतजाम भी करेगी और 24 घंटे बिजली भी देगी, तब किसानों ने मुफ्त बिजली की मांग छोड़ी। मोदी मॉडल का दावा है कि ऊर्जा सुधार लागू होने के बाद शहरों और गावों को 24 घंटे बिजली मिल रही है और किसान भी बिजली के बिल अदा कर रहे हैं।