ज़ुबानी जंग में भले ही नीतीश मोदी के सामने उन्नीस साबित ना हों लेकिन सियासत के मैदान में किंग कौन है यह उप-चुनावों ने साबित किया है।
एक ओर गुजरात के उप-चुनावों में जनता ने एक बार फिर मोदी पर मुहर लगाई। दूसरी ओर, महाराजगंज के उप-चुनाव ने साबित किया कि नीतीश के पास खुद को बिहार का बेशर्त महाराज मानने की कोई वजह नहीं है।
क्या इन नतीजों से बीजेपी और जेडी…
ज़ुबानी जंग में भले ही नीतीश मोदी के सामने उन्नीस साबित ना हों लेकिन सियासत के मैदान में किंग कौन है यह उप-चुनावों ने साबित किया है।
एक ओर गुजरात के उप-चुनावों में जनता ने एक बार फिर मोदी पर मुहर लगाई। दूसरी ओर, महाराजगंज के उप-चुनाव ने साबित किया कि नीतीश के पास खुद को बिहार का बेशर्त महाराज मानने की कोई वजह नहीं है।
क्या इन नतीजों से बीजेपी और जेडीयू के बीच रिश्ते भी नई करवट लेंगे। क्या नीतीश कुमार ने इस हार से सबक लिया है? क्या उनका मोदी विरोधी रुख़ अब भी कायम रहेगा। महाराजगंज के नतीजों पर पहली प्रतिक्रिया में नीतीश कुमार ने साफ किया कि बीजेपी के साथ उनका गठबंधन कायम रहेगा। गुजरात उपचुनाव में बीजेपी को बादशाहत मिली लेकिन बिहार उपचुनाव में जेडीयू को मुंह की खानी पड़ी। क्या इस हार का असर सूबे में जेडीयू और बीजेपी के रिश्तों पर भी पड़ सकता है? मुख्यमंत्री नीतीश की मानें.. तो हरगिज नहीं।
बिहार के महाराजगंज लोकसभा सीट पर नाक की लड़ाई हारने के बाद भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हौसले बुलंद हैं। नीतीश ने अपने विरोधियों को नसीहत देते हुए कहा है कि इस जीत पर ज्यादा इतराने की जरूरत नहीं है क्योंकि असली इम्तिहान अभी बाकी है।