झारखंड में नई सरकार बनने का रास्ता लगभग साफ हो चुका है। आज झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन राज्यपाल के सामने सरकार बनाने का दावा पेश कर सकते हैं। जेएमएम का दावा है कि उसने सरकार बनाने के लिए जरुरी बहुमत जुटा लिया है।
जोड़ तोड़ के साथ ही सही लेकिन झारखंड में एक बार फिर सरकार बनने जा रही है। 13 साल पहले बने इस राज्य में 9वीं बार किसी सरकार क…
झारखंड में नई सरकार बनने का रास्ता लगभग साफ हो चुका है। आज झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन राज्यपाल के सामने सरकार बनाने का दावा पेश कर सकते हैं। जेएमएम का दावा है कि उसने सरकार बनाने के लिए जरुरी बहुमत जुटा लिया है।
जोड़ तोड़ के साथ ही सही लेकिन झारखंड में एक बार फिर सरकार बनने जा रही है। 13 साल पहले बने इस राज्य में 9वीं बार किसी सरकार का गठन होगा। इसके लिए जेएमएम(LP) के नेता और मुख्यमंत्री पद के दावेदार हेमंत सोरेन ने कमर कस ली है। इस सिलसिले में पार्टी ने आज विधायकों की एक बैठक बुलाई है और बहुत मुमकिन है कि बैठक के बाद राज्यपाल सैय्यद अहमद के सामने सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया जाए। जेएमएम के नेताओं का दावा है कि सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत जुटा लिया गया है।
82 सीटों वाली विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 42 विधायकों को समर्थन की जरूरत है। जेएमएम के पास अपने 18 विधायकों के अलावा कांग्रेस के 13 और राजद के पांच विधायकों का भी समर्थन है। इन्हें मिलाकर 36 का आंकड़ा पूरा हो जाता है। बाकी उम्मीद निर्दलीयों की है।
जिन्हें मनाने का दावा किया जा रहा है उम्मीद है कि जोड़ तोड़ के साथ ही सही झारखंड में एक बार फिर एक सरकार सत्ता में आएगी, कितने दिनों के लिए ये देखना दिलचस्प होगा।
साल 2000 में बने झारखंड राज्य में कभी भी कोई सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई। वजह चाहे जो भी रही हो लेकिन झारखंड में सियासत की यही अस्थिरता झारखंड के विकास के लिए भारी साबित हुई है।
मुख्यमंत्री पद के दावेदार झारखंड मुक्ति मोर्चा के हेमंत सोरेन एक बार फिर गठबंधन बनाने की तैयारी में है ताकि 13 साल पहले बने इस राज्य को नौवीं सरकार दी जा सकें। 15 नवंबर 2000 को झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद से राज्य ने आठ सरकारें और चार मुख्यमंत्री देखे हैं।
सियासत की इसी रपटीली जमीन पर अपने पिता के मुख्यमंत्री के तौर पर तीन छोटे कार्यकाल और ऐसे ही तीन दूसरे पूर्व मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल से पूरी तरह वाकिफ हेमंत को खासतौर पर कुछ निर्दलीय विधायकों से बेहद सतर्क रहना होगा क्योंकि समर्थन के बदले वो भारी मोलभाव करेंगे।
झारखंड में राजनैतिक अस्थिरता छोटे दलों और निर्दलीयों मेंकी वजह से ही रही है जो छोटे मुद्दों पर चुनाव जीतकर सरकार गठन में अहम भूमिका निभाते हैं और एक बार फिर इन्ही के बूते बनने जा रही सरकार कब तक चलेगी ये इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता।