भोपाल। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व नरेंद्र मोदी सरकार के बीच समन्वयक की भूमिका में कोई नहीं होगा। मोदी सरकार को संघ के दिशा-निर्देश देने का काम खुद संघ प्रमुख मोहन भागवत करेंगे। भागवत दो दिनों से भोपाल में संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह में शामिल होने के लिए मौजूद हैं। मोदी सरकार के लिए संघ का एजेंडा तय करने के लिए आरएसएस के सभी प्रचारकों का चिंतन शिविर 30 जुलाई से दो अगस्त तक आयोजित किया जाएगा। इसमें राम मंदिर मुद्दे से लेकर धारा 370, समान नागरिक संहिता व विदेश मामलों के बारे में संघ अपनी रणनीति तैयार करेगा।
सूत्रों के अनुसार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अगले एक साल तक मोदी सरकार को पूरी छूट देना चाहता है। भागवत ने अपने पदाधिकारियों और स्वयंसेवकों को भी स्पष्ट संकेत दिए हैं कि उनके प्रयासों से मोदी सरकार बन गई है पर वे सरकार से कोई अपेक्षाएं न पालते हुए अपने काम-धाम में जुट जाएं। उन्होंने स्वयंसेवकों से सरकार से किसी भी तरह का लाभ पाने के बारे में न सोचने को कहा है।
भागवत से जुड़े सूत्रों ने बताया कि इसी दृष्टि से संघ प्रमुख ने आरएसएस व सरकार के बीच सेतु की भूमिका को खत्म कर दिया है। पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित राज्यों में समन्वय की भूमिका सुरेश सोनी निभाया करते थे, बाद में सर कार्यवाह भैयाजी जोशी को यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी। केंद्र में सरकार बनने के बाद भागवत ने इस जिम्मेदारी को अपने पास रखा है। अपरिहार्य परिस्थितियों में संघ प्रमुख की सहमति से उनके प्रतिनिधि भैयाजी जोशी को अधिकार होगा कि वे प्रधानमंत्री से मिलकर संगठन का पक्ष रख सकेंगे। सरकार की छवि के मद्देनजर ऐसा किया जा रहा है। इससे संघ के नाम पर प्रधानमंत्री या किसी मंत्री से मिलकर किसी की सिफारिश कर सकने से भी बचा जाएगा।
राजनीतिक नियुक्तियों से भी संघ इस बार अपने आप को दूर रखेगा। संघ का मानना है कि पिछली बार संघ ने नियुक्तियों में जो सिफारिशें की थीं, उसका अनुभव ठीक नहीं रहा है।