प्रथम जल-महोत्सव हनुवंतिया में दूर-दूर से आने वाले सैलानियों की आवाजाही का क्रम पिछले पाँच दिन से लगातार जारी है। दस दिवसीय जल-महोत्सव में जल,जमीन और एयर आधारित गतिविधियाँ रोजाना आयोजित की जा रही हैं। सोमवार की शाम प्रसिद्ध मैहर बेण्ड की सुमधुर धुनों की प्रस्तुति ने पर्यटकों और संगीत प्रेमी श्रोताओं को मंत्र-मुग्ध कर दिया। इसी को देखते हुए पाँचवें दिन की संध्या भी मैहर बेण्ड की प्रस्तुति हुई। निमाड़ अंचल के ग्रामीण परिवेश को प्रोत्साहित करते हुए बैलगाड़ी से भी पर्यटकों को सैर करवाई जा रही है।
गोलियाँ दागने वाली नली से बहती है संगीत की धारा
लगभग एक शताब्दी पूर्ण करने जा रहे मैहर बेण्ड (आर्केस्ट्रा) की स्थापना संगीत मनीषी पदम विभूषण उस्ताद अलाउद्दीन खाँ ने वर्ष 1918 में की थी। तब से आज तक उस्ताद की इस अमूल्य धरोहर को मैहर बेण्ड के कलाकार लगातार सँजोये आ रहे हैं।
मैहर बेण्ड (वाद्य-वृन्द) के लिये उस्ताद ने बंदूक की नलियों को काटकर नल-तरंग नाम का नया वाद्य बनाया, जो दुनिया का अनूठा वाद्य है। जिस बंदूक की नलियों से गोलियाँ बरसती थीं, उन्हीं नलियों से बने नल तरंग वाद्य को बजाकर मैहर बेण्ड के कलाकार स्वरों की सुमधुर वर्षा करते हैं।
दुनिया के एकमात्र शास्त्रीय संगीत का यह आर्केस्ट्रा (मैहर बेण्ड) अगले साल अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे करने जा रहा है। वर्तमान में मैहर बेण्ड में बारह कलाकार हैं, जो उस्ताद अलाउद्दीन खां द्वारा मैहर वाद्य-वृन्द के लिये अलग से बनाये गये राग-मंजरी जैसे सैकड़ों राग-रागिनी का वादन करते हैं।
मैहर बेण्ड के कलाकारों में सर्वश्री जी.पी.पाण्डे उत्तम, सुरेश कुमार चतुर्वेदी, डॉ. प्रभुदयाल द्विवेदी, डॉ. अशोक बढ़ौलिया, रवीन्द्र भागवत, गुणाकर साँवले, रामायण चतुर्वेदी, विजय शर्मा आदि शामिल हैं।