जब सब एक-दूसरे को जीतने में लगे हों, तो लोग इस बात को लेकर बहुत परेशान हो जाते हैं कि कौन से रास्ते अपनाएं? अध्यात्म में बहुत सरल रास्ता है, जिससे जीत-हार का सवाल तो नहीं उठता, लेकिन आप अजातशत्रु यानी जिसका कोई शत्रु न हो, बन जाएंगे। फकीरों ने कहा है, शास्त्रों में लिखा है कि अच्छे श्रोता बन जाइए। यदि गहराई से किसी को सुना जाए तो आप मेडिटेशन से भी गुजर सकते हैं। इस तरह सुनने का व्यावहारिक लाभ यह है कि बोलने वाले के मन में आपके प्रति आदर का भाव जागता है, जो दोनों में निकटता बढ़ाता है और आप उसे अच्छे से जान पाते हैं। हर आदमी वह सबकुछ बोलना चाहता है जो मन में चल रहा होता है।
यदि आप उसे सुन लेते हैं तो उसे बड़ा संतोष मिलता है। ठीक से सुनकर आप उसकी परिस्थिति, उसके व्यक्तित्व पर ठीक से चिंतन कर पाएंगे। आजकल आधुनिक प्रबंधन में जब कोई व्यक्ति संस्थान छोड़कर जाता है तो उसका एग्जिट इंटरव्यू लिया जाता है, ताकि उसे ठीक से सुना जा सके कि वह क्यों जा रहा है और उसमेंं संस्थान के अनुकूल जो बातें पता चलें, उन्हें लागू किया जा सके। आप भी हर व्यक्ति को एग्जिट इंटरव्यू की तरह सुनें, क्योंकि वह आपके भीतर एंट्री ले रहा होता है। किसी के जाने पर यदि आप गंभीर हैं तो किसी के आने पर भी सावधान रहिए। इसी को नैतिक चर्चा कहेंगे। मतलब यह नहीं है कि सिद्धांत और नीतियों पर ही बात हो।
सामने वाले को ठीक से सुन लेना भी नैतिक चर्चा है। जिस समय आप नैतिकता, गहराई, शांति से सुनते हैं, बोलने वाले को तो प्रसन्नता होती ही है, आपको भी लाभ होगा। अच्छे श्रोता बनने के लिए भीतर से विचारशून्य होना पड़ता है और इसके लिए ध्यान यानी मेडिटेशन जरूर कीजिए।