पवित्र कार्तिक मास का एक नाम दामोदर मास भी है। ‘दाम’ कहते हैं रस्सी को और ‘उदर’ कहते हैं पेट को। इस महीने में माता यशोदा ने भगवान नन्द-नन्दन श्रीकृष्ण के पेट पर रस्सी बाँध कर उन्हें ऊखल से बाँधा था, अतः उनका एक नाम हुआ ‘दामोदर’।
भगवान और उनकी माता के बीच यह लीला कार्तिक के महीने में हुई थी, अतः उस लीला की याद में इस महीने को “दामोदर” भी कहते हैं।
बृज में सुबह-सुबह जब गोपियाँ दही मन्थन करतीं, तो उनका यही भाव होता कि नन्दलाल ये मक्खन – दही खाएं, हमारे कहने पर वो छलिया- नटखट नाचता और नन्हें-नन्हें हाथों से मक्खन को पकड़ता।
भक्तों की इच्छा को पूरा करने के लिये भगवान उनके यहाँ जाते किन्तु जब देखते कि दही-मक्खन तो उनकी पहुँच से दूर ऊपर छींके पर रखा है तो, अपने मित्रों के साथ उसको किसी प्रकार से लूटते।
गोपियां इससे आनन्दित तो होतीं किन्तु नंदनन्दन को देखने के लिये, किसी न किसी बहाने से यशोदा माता के यहाँ जातीं और शिकायत करतीं। माता यशोदा अपने लाल से यही कहतीं कि अरे कान्हा! अपने घर में इतन मक्खन-दही है, फिर तू बाहर क्यों जाता है?
एक दिन माता यशोदा भगवान को दूध पिला रहीं थीं तभी उन्हें याद आया कि रसोई में दूध चूल्हे पर चढ़ाया हुआ था, अब तक ऊबल गया होगा। माता ने लाल को गोद से उतारा और उबलते दूध को आग से उतारने के लिये लपकीं। श्रीकृष्ण ने रोष-लीला प्रकट की और मन ही मन बोलने लगे कि मेरा पेट अभी भरा नहीं और मैया मुझे छोड़कर रसोई में चली गईं।
बस फिर क्या था, भगवान ने सामने दही,घी,माखन रखे हुये मिट्टी के बर्तन को तोड़ दिया। जिससे सारे कमरे में दही बिखर गया, परन्तु इससे भी बालकृष्ण का गुस्सा शान्त नहीं हुआ। उन्होंने कमरे में रखे सभी दूध और दही की मटकियों को तोड़ डाला। इसके बाद छींके पर रखे हुये मक्खन व दही के मटकों को तोड़ने के लिये एक ओखली के ऊपर चढ़ गये।
उधर यशोदा मैय्या जब दूध संभाल कर मुड़ीं तो वह यह देख कर हैरान हो गयीं कि दरवाज़े में से दूध-दही-मक्खन बह रहा है। माता को देखकर श्रीकृष्ण ओखली से कूद कर सरपट भागे। अपने घर में माखन चोरी की श्रीकृष्ण की यह पहली लीला थी। माता यशोदा श्रीकृष्ण को पकड़ने के लिये उनके पीछे दौड़ीं।
मईया ने सोचा आज कन्हैया को सबक सिखाना ही होगा। अतः छड़ी उठाई और उनके पीछे-पीछे भागीं। यह निश्चित है कि सर्वशक्तिमान-अनन्त गुणों से विभूषित भगवान यदि अपने आप को न पकड़वायें तो कोई उनको नहीं पकड़ सकता। यदि वे अपने आप को न जनायें तो कोई उन्हें जान भी नहीं सकता। माता यशोदा का परिश्रम देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी चाल को थोड़ा धीमा किया।
माता ने उन्हें पकड़ लिया और वापिस नन्द-भवन में वहीं पर ले आयीं जहाँ ऊखल पर चढ़ कर भगवान बन्दरों को माखन बाँट रहे थे। सजा देने की भावना से माता यशोदा श्रीकृष्ण को ऊखल से बाँधने लगीं। जब रस्सी से बाँधने लगीं तो रस्सी दो ऊँगल छोटी पड़ गयी। माता रस्सी पर रस्सी जोड़ती जाती परन्तु भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य चमत्कारी लीला से हर बार रस्सी दो ऊँगल छोटी पड़ जाती। सारे गोकुल की रस्सियाँ आ गयीं किन्तु भगवान नहीं बंध पाये, रस्सी हमेशा दो ऊँगल छोटी रही।
भगवान ने अपनी इस लीला के माध्यम से हमें बताया कि वे छोटे से गोपाल के रूप में होते हुये भी अनन्त हैं।
अपनी वात्सल्य रस की भक्त माता यशोदा की इच्छा पूरी करने के लिये वे लीला पुरुषोत्तम जब बँधे तो पहली रस्सी से ही बँध गये, बाकी रस्सियों का ढेर यूँ ही पड़ा रहा। इस लीला के बाद से ही भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम हो गया दामोदर।
श्रीमद्भागवत की टीका में हर बार रस्सी के दो ऊँगल कम पड़ने का कारण बताते हैं — दो ऊँगल अर्थात् मनुष्य की भगवान को पाने की निष्कपट भक्तिमयी चेष्टा (एक ऊँगल) और भगवान की कृपा (दूसरी ऊँगल)। जब दोनों होंगे तब ही भगवान हाथ आयेंगे, नहीं तो कोई भी भगवान को प्राप्त नहीं कर सकता।