जंगल में बरगद के एक बहुत बड़े पेड़ पर चिड़ा और चिड़िया का एक जोड़ा रहता था। दोनों बड़ी मस्ती में गाने गाते, नाचते और मजे से रह रहे थे। चिड़िया सीधी सादी और भोली थी लेकिन चिड़ा बहुत चालाक और कामचोर था। चिड़ा और चिड़िया सुबह उठकर साथ ही दाना – दुनका करने के लिए जाते थे।
एक दिन उन दोनों को खाने के लिए अनाज का एक भी दाना नही मिला। दोनों को बहुत भूख लगी थी। दाना ढूंढने के लिए दोनों उड़ते उड़ते बहुत दूर निकल गए और दूर गाँव में एक घर में जा घुसे। उस घर में एक बर्तन में दाल और दूसरे बर्तन में चावल रखे थे। दाल और चावल देखकर चिड़ा चिड़िया से बोला – “क्यों ना आज हम खिचड़ी बना कर खाएं?” चिड़िया ने भी हाँ कर दी। चिड़े ने अपनी चोंच में दाल भर ली और चिड़िया ने चावल भर लिए और दोनों अपने बरगद के पेड़ पर वापिस लौट आए। वापिस लौटते ही उन्होंने खिचड़ी बनाई। खिचड़ी इतनी स्वादिष्ट बनी की दूर दूर तक खिचड़ी की ख़ुशबू फैल रही थी।
चिड़ा चालाक और कामचोर होने के साथ साथ बहुत बड़ा पेटू भी था। उसने सोचा कि खिचड़ी अगर आधी आधी बांटी तो मेरा पेट नहीं भरेगा और में भूखा ही रह जाऊंगा। उसने एक चाल चली। वो चिड़िया से बोला – “अभी खिचड़ी गर्म है, गर्म गर्म खिचड़ी खाने से मुंह जल जाएगा, चलो जब तक खिचड़ी ठंडी हो तब तक पास के तालाब में नहा आते हैं, फिर आराम से बैठकर मजे से खिचड़ी खाएंगे। लेकिन अगर हम दोनों साथ में नहाने चले गए तो पीछे से कोई जानवर हमारी खिचड़ी खा जाएगा। इसलिए ऐसा करते हैं कि पहले मैं नहा कर आता हूँ, जब मैं नहाकर आ जाऊं तो तुम नहाने चली जाना।” यह कहकर चिड़ा तालाब पर नहाने चला गया और जल्दी से नहाकर वापस लौट आया। उसने चिड़िया से कहा कि अब तुम नहा आओ। जल्दी लौट कर आना फिर दोनों खिचड़ी खाएंगे तब तक मैं यहाँ खिचड़ी की रखवाली करता हूँ। जैसे ही चिड़िया नहाने गई तो चिड़ा खिचड़ी पर टूट पड़ा और कुछ देर में ही सारी खिचड़ी चट कर गया। वो चिड़िया के आने से पहले ही चादर ओढ़ कर सो गया।
थोड़ी देर बाद चिड़िया नहाकर आ गई। उसने ने देखा की खिचड़ी का बर्तन खाली पड़ा है और चिड़ा चादर तान कर सो रहा है। चिड़िया को यह समझते देर नहीं लगी कि यह सब चिड़े की ही करतूत है। उसने गुस्से में चिड़े की चादर खींचकर उसे जगाया। चिड़ा चिड़िया को गुस्से में देखकर अंजान बनने का नाटक करने लगा। चिड़ा बोला – ” क्या हुआ चिड़िया रानी तुम इतने गुस्से में क्यों हो, नहाकर आने में तुम्हे इतनी देर कैसे लग गई, मैं तो तुम्हारा इंतज़ार करता करता सो ही गया था। तुम आगई हो तो चलो अब हम खिचड़ी खाते हैं।” चिड़िया और गुस्से में बोली – “बनने और मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश मत करो। मैं तुम्हारी चाल अच्छी तरह समझ गई हूँ। खिचड़ी तुमने छोड़ी ही कहाँ खाने के लिए, वो तो तुमने पहले ही सारी चट कर ली।” चिड़ा बोला – “यह बिल्कुल झूठ है, मैंने खिचड़ी नही खाई। मुझे सोता हुआ देखकर शायद कोई और जानवर खिचड़ी खा गया होगा।” चिड़िया बोली – “ठीक है, तुम झूठ बोल रहे हो या सच इसका फैसला हम किसी तीसरे पक्षी से करवाएंगे।” थोड़ी दूर पीपल के पेड़ पर एक कौवा रहता था। कौवा बहुत अक्लमंद था। चिड़िया ने कहा कि चलो कौवे से पूछते हैं कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ। दोनों कौवे के पास चले गए।
चिड़िया ने कौवे को सारी बात बताई। चिड़िया की बात सुनकर कौवा सारा माजरा समझ गया, वो बोला – “मैं तुम दोनों की कच्चे धागे से परीक्षा लूंगा। तुम दोनों को बारी बारी से पीपल के इस पेड़ से लटके हुए एक कच्चे धागे से झूलना होगा। तुम में से जो भी झूठा होगा उसका धागा टूट जाएगा और जो सच्चा होगा उसका धागा नहीं टूटेगा।” चिड़ा और चिड़िया दोनों परीक्षा देने के लिए राजी हो गए। चिड़े ने चिड़िया से कहा कि चिड़िया रानी पहले तुम झूलो, मैं तुम्हारे बाद झूलूँगा। चिड़िया बहुत भूखी थी इसलिए उसका वजन भी कम हो गया था। वो बड़े आराम से कच्चे धागे से झूल गई, उसके वजन से धागा नही टूटा। अब चिड़े के झूलने की बारी आई। चिड़ा डरते डरते कच्चे धागे से लटका लेकिन उसके लटकते ही धागा टूट गया क्योंकि वो सारी खिचड़ी अकेले ही खा गया था जिससे उसका वजन भी बढ़ गया था। चिड़ा धड़ाम से जमीन पर आ गिरा। उसके मुंह और पैर में चोट भी लगी।
कौवे ने कहा कि हो गया फैसला – चिड़िया सच्ची और चिड़ा झूठा, सारी खिचड़ी चिड़े ने ही खाई है। चिड़े ने भी अंत में अपनी गलती मान ही ली।