एक बार अचानक महाराज के दिमाग में न जाने क्या बात आ गई कि वह संगीत में रुचि लेने लगे| देश के प्रसिद्ध संगीतकार उनके पास आने लगे| वे संगीत की दुनिया में इतने लिप्त हो गए कि उन्होंने राज्य की ओर ध्यान देना ही छोड़ दिया और तो और उन्होंने दरबार में भी जाना छोड़ दिया था|
इसका परिणाम यह हुआ कि मंत्री अपनी मनमानी करने लगे| वह प्रजा को तंग करने लगे प्रजा से मनमाने ढंग से कर वसूलने लगे| इससे प्रजा में महाराज की छवि बिगड़ने लगी| यह देखकर तेनालीराम को बहुत दुख हुआ| तेनालीराम ने महाराज को सुधारने की तरकीब सोची|
एक दिन एक व्यक्ति सुबह-सुबह महाराज से मिला और उन्हें एक पगड़ी वह जूता दिखा कर बोला:-” महाराज! मुझे यह सामान नदी के किनारे पड़ा हुआ मिला है| यह दोनों चीजें आपके तेनालीराम की है| इसी कारण मैं आपको सूचना देने चला आया कि तेनालीराम ने आत्महत्या कर ली है”|
यह खबर सुनते ही पहले तो महाराज कृष्णदेव राय को विश्वास ही नहीं हुआ कि तेनालीराम आत्महत्या भी कर सकता है| फिर अपने को नियंत्रित करते हुए उस व्यक्ति से पूछने लगे:-” तेनालीराम को आत्महत्या करने की जरूरत क्यों पड़ी?”
इस पर उस व्यक्ति ने महाराज को बताया कि वह बहुत दिनों से उदास रहने लगे थे| वह प्राय कहा करते थे कि मैंने अपना सारा जीवन महाराज को समर्पित कर दिया, परंतु अब ऐसे जीवन का क्या फायदा जब महाराज के दर्शन ही नहीं हो पाते|
यह जानकर महाराज कृष्णदेव राय को बहुत दुख हुआ| उसी दिन से उन्होंने अपनी दिनचर्या को बदल लिया| वह प्रातः काल संगीत सुनते, प्रतिदिन दरबार जाने लगे और नागरिकों के सुख-दुख में शामिल होने लगे| इसके अतिरिक्त वह वेश बदलकर नगर के हाल-चाल स्वयं पता करते थे| इससे उनकी छवि सुधारने लगी|
एक रात को जब महाराज नगर में घूम रहे थे तो उन्हें अचानक तेनालीराम के परिवार वालों का ध्यान आ गया| तेनालीराम के परिवार वालों की सुध बुध लेने की इच्छा से वे उनके घर पहुंच गए| वहां पहुंचने पर उन्हें तेनालीराम एक चारपाई पर लेटे हुए मिला|
महाराज ने पूछा कि:-‘ तुम तो मर गए थे फिर जिंदा कैसे हो गए?’
तेनालीराम ने मुस्कुराकर उत्तर दिया:-” महाराज! यह मेरा दूसरा जन्म है| इस बात पर महाराज को तेनालीराम की सारी बातें समझ में आ गई| वह तेनालीराम को कल से दरबार में उपस्थित होने का आदेश देकर चले गए|