दुश्मन राजा का स्वागत

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प्राचीन समय में उज्जैन बहुत धनी राज्य था। उस समय उज्जैन पर राजा पुष्पमणि का राज था। राजा पुष्पमणि अपनी प्रजा से अपने बच्चों की तरह प्यार करते थे। पुष्पमणि के मंत्री और सैनिक भी बहुत ईमानदार और स्वामिभक्त थे। एक पड़ोसी राजा की बुरी नजर हमेशा उज्जैन की धन दौलत पर लगी रहती थी।

एक बार पड़ोसी राज्य के राजा ने उज्जैन के राजा को एक लिखित सन्देश भिजवाया। संदेश में लिखा था “शिप्रा नदी आपके राज्य से होकर हमारे राज्य में प्रवेश करती है लेकिन आप उससे इतना अधिक पानी लेते हैं कि हमारे राज्य के लिए पानी बचता ही नहीं है। इस कारण हमारे राज्य में पानी की बहुत कमी पड़ जाती है। इसलिए हमारे पास एक ही रास्ता बचा है की हम उज्जैन पर हमला कर दें और उसे अपने राज्य में मिला लें।” सन्देश पाते ही राजा पुष्पमणि चिंतित हो गए। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि पड़ोसी राज्य की इतनी बड़ी सेना से वो कैसे मुकाबला करेंगे? अभी वो कोई फैसला भी नहीं ले पाये थे लेकिन पड़ोसी राज्य ने तो अचानक उज्जैन पर हमला ही कर दिया। उज्जैन के सैनिक भी अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए पूरी ताकत से दुश्मन से लड़ने लगे। दुश्मन की सेना बहुत बड़ी थी। उज्जैन के सैनिक पूरी शक्ति से लड़ रहे थे परन्तु वो हारने लगे और दुश्मन सेना धीरे धीरे राजधानी की ओर बढ़ने लगी।

राजा पुष्पमणि को महल में ही युद्धभूमि के समाचार मिल रहे थे। राजा पुष्पमणि ने सोचा ” मेरे सैनिक बहुत बहादुर और स्वामिभक्त हैं लेकिन पडोसी राज्य की सेना बहुत बड़ी है, जिस तरह से युद्ध चल रहा है उसके हिसाब से तो कुछ दिनों में ही मेरे सारे सैनिक मारे जाएंगे और मेरे उज्जैन राज्य पर भी शत्रु राजा का अधिकार हो जाएगा।” बहुत सोच समझ कर राजा ने अपने मंत्रियों को बुलाया और कहा कि मैं युद्ध के बारे में कुछ परामर्श करना चाहता हूँ। सारे मंत्रियों की बैठक लग गई और चर्चा शुरू हुई। राजा ने कहा “हमारे सैनिक रोज कम होते जा रहे हैं, क्या आप लोग ये युद्ध जीतने का कोई उपाय सुझा सकते हैं, क्या आप लोग कोई सलाह दे सकते हैं जिस से हम अपने राज्य को बचा लें और यह युद्ध जीत जाएँ। युद्ध में दुश्मन के भारी पड़ने से मुझे बहुत चिंता हो रही है।” राजा पुष्पमणि के सभी मंत्री बहुत बुद्धिमान थे। राजा की बात सुन कर वो आपस में विचार करने लगे। थोड़ी देर विचार करने के बाद सभी मंत्री एक निर्णय पर पहुंचे। उनमें से एक मंत्री खड़ा हो कर बोला “महाराज अब आप युद्ध की बिलकुल भी चिंता न करें, अपनी सारी चिंता हम पर छोड़ दें। आप सिर्फ इतना कीजिये की आप खुद को राजमहल में बंद कर लीजिए और जब तक हम शत्रुओं को पराजित कर के युद्ध समाप्त न कर दें तब तक आपको बाहर नहीं निकलना है, राज्य में किसी को भी आपकी परछाई तक नहीं दिखनी चाहिये। सबको ये लगना चाहिए कि आप मर गए हैं और आप इस दुनिया में ही नहीं हैं। बाकी सब काम हम देख लेंगे।” राजा ने पूछा कि यह नाटक करने से क्या लाभ होगा? इससे हम युद्ध कैसे जीतेंगे और यदि मेरे मरने की बात सुनी तो हमारी सेना भी घबरा जाएगी। मंत्री ने कहा कि महाराज आप चिंता न करें, जो भी होगा अच्छा ही होगा। राजा ने अपने मंत्रियों की बात मान ली और राजमहल के एक कमरे में छिप गए। राजा के छिपते ही मंत्रियों ने यह घोषणा कर दी की राजा पुष्पमणि की मृत्यु हो गई है। अपनी बात को सही दिखाने के लिए मंत्रियों ने राजा की नकली शवयात्रा निकाली और फिर उसका अंतिम संस्कार भी कर दिया। यह सब इसलिए भी किया जिससे कि पड़ोसी राजा तक यह समाचार बिना पहुंचाए ही पहुँच जाए।

जल्दी ही राजा पुष्पमणि की मृत्यु का समाचार पडोसी राज्य तक पहुँच गया। यह सुनकर शत्रु राजा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने सोचा की यह तो बहुत अच्छा हुआ, अब राजा ही नहीं रहा तो उज्जैन की सेना लड़ेगी किसके लिए, अब मुझे उज्जैन पर कब्ज़ा करने में बहुत आसानी होगी। वो सोचने लगा कि अब तो मेरी जीत पक्की है इसलिये युद्ध की थकान उतारने के लिए वो मस्त होकर नाच गाने में लग गया और उसने अपनी सेना की ओर ध्यान देना बिलकुल छोड़ दिया। इसी बीच उज्जैन के मंत्रियों ने उसे एक पत्र लिखा। पत्र में उन्होंने लिखा “महाराज आपको यह तो पता ही है कि हमारे राजा पुष्पमणि अब नहीं रहे। उनकी अनुपस्थिति में हम युद्ध भी नहीं कर सकते। अब हम लोग सोच रहे हैं कि क्यों न हम आपको ही अपना राजा मान लें। आप समझिये की उज्जैन अब आपका अपना ही राज्य है। आप उज्जैन आइये हमारी जनता आपका स्वागत करेगी और हम आपको उज्जैन का राजमुकुट पहनाएंगे।” अपना संदेश भेज कर उज्जैन के मंत्री शत्रु राजा के स्वागत की तैयारी करने में लग गए, उन्होंने अपनी सेना को भी इस बात का संकेत दे दिया और स्वागत की पूरी तैयारी कर ली।

मंत्रियों का सन्देश पाकर शत्रु राजा और भी बहुत ज्यादा खुश हो गया और अपनी बढ़ाई मारते हुए अपने मंत्रियों से बोला ” मैं तो पहले से ही यह जानता था कि इस युद्ध में जीत मेरी ही होगी। अब मैं उज्जैन जाकर बड़े शान से वहाँ की राजगद्दी पर बैठूंगा और उज्जैन जैसा समृद्ध राज्य भी मेरा होजाएगा। अब मैं और भी अधिक शक्तिशाली हो जाऊंगा।” ख़ुशी ख़ुशी में राजा अपने थोड़े से सैनिकों को साथ लेकर उज्जैन की ओर चल पड़ा। वो उज्जैन के सिंहासन पर बैठने के लिए इतना अधिक उतावला हो रहा था की शाम तक बिना कहीं रुके उज्जैन जा पहुंचा। उसे लग रहा था की दरबार में उसका जोरदार स्वागत होगा।

जैसे ही राजा उज्जैन पहुंचा तो उज्जैन के मंत्रियों ने अपने सैनिकों को इशारा किया और सैनिकों ने राजा को कैद कर लिया और उसके सिपाहियों को मार दिया। उसे अपने बचाव के लिए कुछ सोचने का मौका ही नहीं मिला। इस तरह मंत्रियों की बुद्धिमानी से उज्जैन गुलाम होने से बच गया। अगले दिन राजा पुष्पमणि अपने चतुर मंत्रियों और प्रजा के सामने प्रकट हुआ। अपने राजा को सही सलामत देख उज्जैन की प्रजा बहुत खुश हुई। पुष्पमणि ने अपने मंत्रियों को गले लगाकर कहा “मुझे आप लोगों पर बहुत गर्व है। आप जैसे बुद्धिमान मंत्री और बहादुर सैनिकों के होते हुए उज्जैन को कभी कोई नहीं हरा सकता।”