हमारे देश में अनगनित मंदिर मौजूद हैं। इनमें से अधिकतर के पीछे कोई न कोई कहानी जुड़ी हुई है। आपने किसी ऐसे मंदिर के बारे में सुना है जहां भगवान के साथ भक्त की भी पूजा होती है। बिहार के गोपालगंज जिले में एक ऐसा मंदिर मौजूद है। यहां से सीवान जाने के रास्ते में ‘थावे’ नाम की एक जगह है। यहां माता के एक रूप माता थावेवाली का मंदिर मौजूद है। यहां आने वाले भक्त माता थावेवाली को सिंहासिनी भवानी, थावे भवानी और रहषु भवानी के नाम से भी जानते हैं।
52 शक्तिपीठों में से एक
इस मंदिर के पीछे ऐसी मान्यता है कि देवी दुर्गा यहां कामख्या से चलकर कोलकाता होते हुए पटना के रास्ते यहां पहुंची थी। आपको बता दें कि थावे को देश के 52 सिद्धपीठों में एक माना जाता है। इस मंदिर से जुड़़ी एक पुरानी कहानी है। ऐसा कहा जाता है कि हथुआ के राजा मनन सिंह थे। वे देवी दुर्गा के बहुत बड़े भक्त थे। मनन सिंह अपने से बड़ा किसी और को माता का भक्त नहीं मानते थे। एक बार उनके राज्य में भयानक अकाल पड़ा और लोग भूख से तड़प-तड़पकर मरने लगे।
महल हुआ खंडहर में तब्दील
एक मान्यता यह भी है कि थावे के मंदिर में ही माता कामख्या का एक भक्त रहषु रहा करता था। वह दिन में दूसरे इलाके से फसल काटकर लाता था और रात मंे उससे दाने निकल आते थे। राजा को जब यह बात पता चली तो वह ऐसा मानने से बिल्कुल इंकार कर दिया कि रहषु पर माता की कोई कृपा है। रहषु की सच्चाई जानने के लिए उसने कहा कि अगर वह माता का भक्त है तो माता को वहां बुलाए। रहषु ने कहा कि अगर माता यहां आएंगी तो राज्य पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगा। रहषु के लाख कहने के बाद भी राजा नहीं माने। इसके बाद रहषु ने माता का आह्वान किया। उसके बुलावे पर देवी कोलकता, पटना और आमी होते हुए थावे पहुँची। माता तो वहां आईं लेकिन उनके दर्शन के लिए न राजा बचा और न ही उसका राज्य। उसका महल भी पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो गया।
माता के साथ भक्त की पूजा
ऐसा माना जाता है कि देवी ने जिस जगह पर पर दर्शन दिए थे वहीं पर माता का एक विशाल मंदिर मौजूद है जो थावेवाली माता के मंदिर के नाम से विख्यात है। इस मंदिर से कुछ ही दूरी पर रहषु भगत का मंदिर भी है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में आने वाले भक्त रहषु के मंदिर में भी अपनी हाजरी जरूर देते हैं अन्यथा उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है।