मिट्ठू चाचा-कहानी

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मिट्ठू चाचा एक छोटे से कमरे में अकेले रहते थे। उसी कमरे में खाना बनाते थे, उसी में खाते थे, उसी में सोते थे। दिन भर उसी कमरे में बंद रहते थे। कोई काम होता था, तभी बाहर निकलते थे। उनके कमरे के बगल में खूब बड़ा-सा मैदान था, जहां शाम को बहुत से बच्चे खेलने आते थे। मिट्ठू चाचा को बच्चों का शोर मचाना बिल्कुल पसंद नहीं था। उनके पास एक छोटी-सी छड़ी थी। उसी से वे बच्चों को डराते थे। बच्चे भी उन्हें चिढ़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। उनके लिए मिट्ठू चाचा को चिढ़ाना एक खेल था। मिट्ठू चाचा जहां कहीं भी दिखाई पड़ जाते, बच्चे उनके पीछे लग जाते थे।

उस दिन महीने भर बाद मिट्ठू चाचा अपने गांव से लौटे थे। गांव में उनके पास थोड़ी-सी जमीन थी। उस जमीन के बदले में गांव वाले मिट्ठू चाचा को गेहूं और चावल दे देते थे। उसी से उनके खाने-पीने का काम चल जाता था। दरवाजे पर रिक्शा रुका। मिट्ठू चाचा ने गेहूं-चावल की बोरियां रिक्शे से उतारीं और अपने कमरे में एक ओर रख दी। फिर रिक्शेवाले से किराए को लेकर बहस करने लगे। उनकी आवाज सुन कर आसपास के लोगों को उनके आने की खबर लग गई। बहुत मुश्किल से उन्होंने रिक्शेवाले को विदा किया। रिक्शेवाला बड़बड़ाता हुआ वहां से चला गया। मिट्ठू चाचा भी अपने कमरे में आ गए। उन्हें जोर की प्यास लगी थी। ‘विनोद, जरा एक गिलास पानी ले आओ।’ उन्होंने विनोद को आवाज दी। ‘अभी लाया चाचा।’ विनोद ने कहा। उसे शरारत करने की सूझी। उसने पानी के गिलास में ढेर सारा नमक मिलाया और मिट्ठू चाचा को दे आया।
पानी पीते ही मिट्ठू चाचा जोर-जोर से चिल्लाने लगे, ‘ये कैसा पानी दिया है?’

विनोद ताली बजा कर हंसने लगा। मिट्ठू चाचा ने अपनी छड़ी उठाई और उसे मारने के लिए दौड़ाया। विनोद भाग कर अपने घर में छिप गया।
बहुत देर तक मिट्ठू चाचा उसके घर के बाहर खड़े उसे कोसते रहे। फिर वहां से लौट आए। हर रोज बच्चे उनके साथ कुछ न कुछ शरारत किया करते थे।

आज पूरे दिन मिट्ठू चाचा का दरवाजा नहीं खुला। बाहर लगे हैंडपंप पर अपने बर्तन धोने और नहाने के लिए भी वे वहां नहीं दिखे। विनोद ने उनकी खिड़की से झांक कर देखा। मिट्ठू चाचा अपने बिस्तर पर पड़े हुए थे। वे बुरी तरह कांप रहे थे। विनोद को कुछ समझ में नहीं आया। वह भाग कर अपने दोस्तों को बुला लाया। दीपू ने धीरे से उनका दरवाजा खटखटाया। अंदर से कोई आवाज नहीं आई। जब दीपू ने जोर से धक्का दिया तो दरवाजा खुल गया।
‘मिट्ठू चाचा, आप क्यों कांप रहे हैं?’ दीपू ने पूछा।

बच्चों को देखते ही मिट्ठू चाचा उठने की कोशिश करने लगे, लेकिन उठ नहीं पाए। ‘चलो जाओ यहां से। नहीं तो मैं मारूंगा।’ बहुत मुश्किल से वे बोल पाए।
‘हम कोई शरारत करने नहीं आए हैं। लगता है आपकी तबियत ठीक नहीं है।’ इतना कह कर कक्कू ने उनके हाथों को छुआ। हाथ बहुत गरम था।‘इनको तो तेज बुखार है।’ कक्कू ने अपने दोस्तों को बताया। मिट्ठू चाचा भी अब उठ गए थे।
‘चाचा, हम आपके लिए दवा लेकर आते हैं।’ दीपू वहां से चलने लगा। मिट्ठू चाचा ने उसे इशारे से रोका। उसे पास बुलाया और खूंटी पर टंगा कुर्ता देने को कहा। दीपू ने झटपट कुर्ता उतार कर मिट्ठू चाचा को दे दिया। मिट्ठू चाचा ने कुर्ते की जेब से कुछ पैसे निकाले और दीपू को दिया।

पैसे लेकर दीपू दौड़ता हुआ गया और चौराहे के मेडिकल स्टोर से बुखार की दवा खरीदी। विनोद अपने घर से गरम पानी ले आया। दवा खाकर मिट्ठू चाचा आराम करने लगे। थोड़ी देर में उनका बुखार उतर गया। बुखार उतरने पर वे अपने कमरे से बाहर आए। बच्चे बाहर बैठे थे।

‘तुम लोगों को बहुत धन्यवाद।’ मिट्ठू चाचा मुस्करा रहे थे। उन्होंने सबको अपने पास बुलाया। फिर उन्हें अपने गांव से लाया गुड़ खाने को दिया।
‘चाचा, आप यहां अकेले क्यों रहते हैं? क्या आपके घर में कोई नहीं है?’ कक्कू ने पूछा।

उसकी बात सुन कर मिट्ठू चाचा की आंखें भर आईं। थोड़ी देर चुपचाप रहे, फिर बोले, ‘मेरे घर में सब लोग हैं। मेरा बेटा है, बहू है और तुम्हारी तरह प्यारा-सा पोता भी है।’

‘लेकिन वे लोग रहते कहां हैं?’ दीपू ने पूछा।

‘सब लोग यहां से बहुत दूर एक बड़े शहर में रहते हैं।’ मिट्ठू चाचा ने बताया।
‘आप वहां नहीं जाते?’ कक्कू ने पूछा।
‘वे लोग मुझे नहीं ले जाते।’ इतना कह कर मिट्ठू चाचा जोर-जोर से रोने लगे। यह सुन कर बच्चों को बहुत बुरा लगा।

‘कोई बात नहीं चाचा। हम सब आपके साथ हैं। आज से हम आपको कभी परेशान नहीं करेंगे।’ विनोद बोला। बच्चों ने उनसे माफी मांगी।
उस दिन से मिट्ठू चाचा बच्चों की टोली में शामिल हो गए। अब उन्होंने बच्चों को डांटना छोड़ दिया था। वे बच्चों को गांव की कहानियां सुनाते थे, उन्हें पढ़ाते थे, उनके साथ खेलते थे। बच्चे भी उनका खूब ध्यान रखते थे।