एक बार महाराजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम को एक बकरी दी और कहा कि जितनी घास यह खाती है तुम्हें उससे तीन गुना ज्यादा घास रोज़ाना इसको खिलानी है। साथ में महाराज ने यह भी कहा कि तेनाली रामन ध्यान रखना बकरी का वजन बढ़ना नहीं चाहिए। यदि बकरी का वजन नहीं बढ़ा तो तेनाली को इनाम दिया जाएगा लेकिन यदि बकरी का वजन बढ़ गया तो तेनाली को दंड भुगतना होगा।
तेनाली ने खुशी-खुशी इस बात को स्वीकार कर लिया। राजा और बाकी दरबारी सोच रहे थे कि अब तो तेनाली फंसा ही समझो। राजा ने वज़न तुलवा कर बकरी तेनाली के हवाले कर दी। तेनाली ने बकरी ली और चुपचाप घर चला गया।
दिन में तेनाली बकरी को खूब घास खिलाता, मगर रात को बकरी के सामने कसाई का एक बड़ा छुरा टांग देता था। तेनाली रात को कई बार बकरी के सामने ही उस छुरे को बड़े से पत्थर पर घिसने बैठ जाता था और कभी कभी तो झूठ मूठ बकरी की गर्दन पर छुरे को रख देता। बकरी का तो सारा खून जल जाता, उसका दिन भर का खाया पिया डर और घबराहट से सब बराबर हो जाता था। एक महीने तक तेनाली ने ऐसा ही किया।
एक महीने बाद तेनालीराम फिर से दरबार में हाजिर हुआ। महाराज सोच रहे थे कि बकरी तो खा पी कर खूब मोटी हो गई होगी। लेकिन जब बकरी का वज़न किया गया तो महाराज तथा सारे दरबारी हैरान रह गए। बकरी का वज़न बिल्कुल उतना ही निकला जितना एक महीने पहले था।
महाराज ने पूछा की तेनाली तुमने बकरी को तीन गुना ज्यादा चारा खिलाया या नही? तेनाली ने जवाब दिया कि महाराज मैंने पूरी ईमानदारी से बकरी को रोज तीन गुना ज्यादा चारा खिलाया। महाराज ने पूछा फिर बकरी मोटी क्यों नहीं हुई? उतनी की उतनी कैसे है? तब तेनाली ने महाराज को सारी बात बताई कि कैसे वह दिन में उसे तीन गुना ज्यादा चारा खिलाता था लेकिन रात को उसके सामने कसाई का बड़ा छुरा टांग देता था और घबरा-घबरा कर बकरी का वज़न फिर बराबर हो जाता था।