शनि जयंती पर 10 साल बाद बन रहा शुभ-अमृत योग

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धर्म ग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर शनि जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 18 मई, सोमवार को है। इस बार शनि जयंती का पर्व बहुत ही खास है क्योंकि इस दिन 10 साल बाद शनि जयंती व सोमवती अमावस्या का विशेष योग बन रहा है।

शनि जयंती का पर्व सोमवार को होने से लोग इस दिन भगवान शिव व शनिदेव दोनों की प्रसन्नता के लिए उपाय कर सकते हैं। इस दिन भगवान शिव की साधना व शनिदेव की आराधना करने से मानसिक शांति तथा ढय्या व साढ़े साती से प्रभावित लोगों को राहत मिल सकती है। साथ ही चंद्र व शनि की अनुकूलता के लिए दोनों ग्रहों के मंत्रों का जाप तथा इनसे संबंधित वस्तुओं का दान भी करना भी शुभ रहेगा।

वर्तमान में जिन लोगों पर इस समय शनि की साढ़ेसाती व ढय्या चल रही है, वे यदि शनि जयंती के दिन शनिदेव को प्रसन्न करने के कुछ विशेष उपाय करें तो उन्हें कुछ राहत मिल सकती है..इस समय तुला, वृश्चिक व धनु राशि पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव है, वहीं सिंह व मेष राशि पर ढय्या चल रही है।

इस बार 18 जून को उच्च राशि में चंद्रमा रहेगा। इस दिन शोभन योग भी बनेगा। मान्यता के अनुसार यदि अमावस्या शुभ दिन, शुभ योग तथा उच्च राशि के चंद्रमा में आ रही है तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन वट सावित्री अमावस्या भी है।सोमवती अमावस्या पर चतुर्ग्रही योग का संयोग भी बन रहा है।

ग्रह गोचर के अनुसार अमावस्या पर वृषभ राशि में क्रमशः सूर्य, चंद्र, मंगल तथा बुध ग्रह का परिभ्रमण रहेगा। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार इन ग्रहों का क्रमानुसार चतुर्ग्रही योग दुर्लभ माना जाता है। इस योग में स्नान-दान का विशेष फल प्राप्त होता है।

शनि से प्रभावित व्यक्ति कई प्रकार के अनावश्यक परेशानियों से घिरे हुए रहते हैं। कार्य में बाधा का होना, कोई भी कार्य आसानी से न बनना जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है। इस समस्या को कम करने हेतु शनिचरी जयंती के दिन शनि से संबंधित वस्तुओं का दान करना उत्तम रहता है।

जिन लोगों की जन्म कुंडली में शनि का कुप्रभाव हो उन्हें शनि के पैरों की तरफ ही देखना चाहिए, जहां तक हो सके शनि दर्शन से भी बचना चाहिए।

शनि से घबराने की आवश्यकता नहीं है बल्कि शनि को अनुकूल कर कार्य सिद्ध करने के लिए विधिपूर्वक मंत्र जाप एवं अनुष्ठान जरूरी होते हैं। वस्तुतः पूर्व कृत कर्मों का फल यदि आराधना के द्वारा शांत किया जा सकता है, तो इसके लिए साधकों को पूरी तन्मयता से साधना और आराधना करनी चाहिए। इसदिन शनि मंदिरों एवं हनुमान के मंदिरों में शनि जयन्ती को पूरी निष्ठा के साथ विशेष अनुष्ठान संपन्न किए जाते हैं।

शनिदेव का तेज करोड़ों सूर्य के समान बताया गया हैं । शनिदेव न्याय, श्रम व प्रजा के देवता हैं । यदि किसी व्यक्ति के कर्म पवित्र हैं तो शनि सुखी-समृद्धि जीवन प्रदान करते हैं । गरीब और असहाय लोगों पर शनि की विशेष कृपा रहती है। जो लोग गरीबों को परेशान करते हैं, उन्हें शनि के कोप का सामना करना पड़ता है।

सूर्यपुत्र शनि को न्यायाधीश का पद प्राप्त है । इस वजह से शनि ही हमारे कर्मों का शुभ-अशुभ फल प्रदान करते हैं । जिस व्यक्ति के जैसे कर्म होते हैं, ठीक वैसे ही फल शनि प्रदान करते हैं । परंतु ज्योतिषियों द्वारा नवग्रहों में न्यायाधीश शनि की सर्वाधिक निंदा की गई है ।

शनिदेव सूर्य पुत्र हैं और वे अपने पिता सूर्य को शत्रु भी मानते हैं। शनि देव का रंग काला है और उन्हें नीले तथा काले वस्त्र आदि विशेष प्रिय हैं। ज्योतिष में शनि देव को न्यायाधीश बताया गया है। व्यक्ति के सभी कर्मों के अच्छे-बुरे फल शनि महाराज ही प्रदान करते हैं। साढ़ेसाती और ढय्या के समय में शनि व्यक्ति को उसके कर्मों का फल प्रदान करते हैं।

अमावस्या को मंदिरों में प्रातः सूर्योदय से पूर्व पीपल के वृक्ष को जल चढ़ाना तथा दिन में शनि महाराज की मूर्ति पर तैलाभिषेक एवं यज्ञ अनुष्ठानों के द्वारा हवनात्मक ग्रह शांति यज्ञ करने से मनुष्य को अपने पाप कर्मों से छुटकारा प्राप्त होता है।

किसी ने सच ही कहा है कि शनि जाते हुए अच्छा लगता है ना कि आते हुए। शनि जिनकी पत्रिका में जन्म के समय मंगल की राशि वृश्चिक में हो या फिर नीच मंगल की राशि मेष में हो तब शनि का कुप्रभाव अधिक देखने को मिलता है। बाकि की राशियां सिर्फ सूर्य की राशि सिंह को छोड़ शनि की मित्र, उच्च व सम होती है। ज्येष्ठ मास में सोमवती अमावस्या के साथ शनि जयंती का अगला संयोग अब 2019 में बनेगा।